________________ निष्फल यात्रा 115 एक मछली अपनी सम्पूर्ण शक्ति के बल पर मछलीमार के हाथ से छिटक कर जल में जा गिरी। परंतु क्या वह जीवन पा गयी? क्या उसे मुक्ति मिली? उसके भाग्य में मुक्ति थी ही नहीं। वह जाल से अवश्य मुक्त हो गयी... परंतु हाय रे दुर्भाग्य! बगुले की चोंच का शिकार बन गयी। और मुक्ति के बजाय मृत्यु को गले लगा गयी। मदोन्मत्त गजराज के कुंभस्थल पर महावत रह रह कर अंकुश-प्रहार कर रहा था। फलतः अंकुश प्रहार की असह्य पीड़ा से त्रस्त कुंभस्थल ने नया रूप धारण करने का मन ही मन निश्चय कर लिया और नारी के वक्षः स्थल पर जा बैठा। परंतु हाय रे दुर्भाग्य! यहाँ भी उन्हें शान्ति और सुख प्राप्त नहीं हुआ! पुरूष के नखों से छेदित हो, लहुलुहान हुए और हाथ से ऐंठे गये! .. चंद्र में कलंक, कमलनाल... (मृणाल) में कंटक, युवती को स्तन भार, केश-समूह में पकापन, समुद्र में खारापन, पंडित की निर्धनता और ढलती उम्र में धन-विवेक! वास्तव में इसका सक्ष्मावलोकन करने से विधाता निर्विवेकी ही सिद्ध होता है न! विधि की वक्रता एवम् विचित्रता के सम्बन्ध में विचार करता वह अपने पूर्व भव के पाप कर्मों को मन ही मन कोसता हआ और 'अब मैं क्या करूगा? कहाँ जाऊँगा? मेरा क्या होगा?' इस चिन्ता में डूबा हुआ खिन्न हृदय तथा थके पाँव भीमसेन पुनः धनसार की दूकान पर लौट आया। कहो भाई! क्या हुआ? अब तो तुम्हारे दुर्दिन समाप्त हो गये होंगे? " धनसार ने एक साथ कई प्रश्न कर डाले। “सेठजी! मेरा दुर्भाग्य मेरे से एक कदम आगे चलता है। वह कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। उफ्, मेरा भाग्य ही खोटा है। मैं जब कभी सुख प्राप्ति की आशा लेकर मंजिल की ओर बढ़ता हूँ. मेरा दर्भाग्य मझसे पूर्व ही वहाँ पहँच जाता है। जीतशत्र ने भी मेरी सहायता करने से मना कर दिया है। अब मैं अपनी पत्नी व बालकों को अपना मुँह किस तरह दिखाऊँगा? न जाने वे बेचारे कितने कष्ट में अपने दिन व्यतीत कर रहे होंगे?" भीमसेन ने भरे गले से कहा। और कछ क्षण मौन रहा, पुनः बोला : "सेठजी! लगता है अब मुझे तत्काल ही यहाँ से प्रयाण करना चाहिए। जहाँ आशा की कोई किरण ही दिखाई न दे, भला वहाँ रूक कर व्यर्थ समय क्यों गवाया जाय? अतः हे दया निधान! मुझे मेरे शस्त्र लौटाने का कष्ट करें। मैं अब यहाँ से चला जाऊँगा, एक * * पल भी रहना नहीं चाहता। मेरा यहाँ से चला जाना ही इष्ट है।" “किन शस्त्रों की बात कर रहे हो भइया? " धनसार ने मुस्कराते हुए तीव्र स्वर में कहा। उसके मन में शैतान ने अंगड़ाई ले, विकराल रूप धारण कर लिया। फलतः भीमसेन की लाचारी का लाभ उठाने का मन ही मन निश्चय कर लिया। उसने सोचा यदि किसी प्रकार से भीमसेन को झूठा सिद्ध कर दें तो वह उसका वेतन देने से बच P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust