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________________ निष्फल यात्रा 113 "भई! तुम्हारी बात मैंने सुन ली है। परंतु तुम्हें तो अपने ही नगर के राजा हरिषेण से याचना करनी चाहिये थी। खेद है कि मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकूँगा। फिल्हाल मेरे यहाँ किसी नौकर की आवश्यकता नहीं है। अतः अब समय गंवाये बिना तुम कहीं अन्यत्र काम की खोज करो।" भीमसेन को अरिंजय से ऐसी अपेक्षा नहीं थी। उसने स्वप्न में भी नहीं सोचा था, कि हजारों के दुःख दर्द दूर करनेवाला भी उसे निराश कर सकता है। वह तो अब तक यही सोच कर मन ही मन सपनों के शीश महल बनाता रहा, कि शीघ्र ही उसे काम मिल जायेगा और आनन-फानन में उसके दुर्दिन समाप्त हो जायेंगे। परंतु हाय रे दुर्भाग्य! ऐसा कुछ भी न हुआ। इसके बजाय अरिंजय ने तो स्पष्ट शब्दों में इन्कार कर दिया। भीमसेन का हृदय विदीर्ण हो गया। वह भग्न हृदय धनसार के पास लौट आया। "अरे भीमसेन! इस तरह मुँह क्यों लटका रखा है। क्या राजाने तुम्हारा काम नहीं किया?" धनसार ने उत्सुकतावश पूछा। "सेठजी! जिसका भाग्य ही बोदा हो, भला उसकी कौन सहायता करेगा? यह सब कर्म की ही लीला है। उसकी ही कृपा से कोई चक्रवर्ती सम्राट बनता है, तो कोई अपार धन सम्पदा का मालिक और कोई रंक... राह का भिखारी! सारा जगत ही कर्म बन्धन में गुंथा हुआ है। कर्म के अनुसार प्रत्येक को उसका फल भोगना पड़ता है। उसके बिना छुटकारा नहीं। मैं अभागा जो ठहरा, अतः मेरा काम सफल नहीं हुआ।" भीमसेन ने दुःखी हृदय सारा वृतान्त सुनाया।" जैसी जिसकी भवितव्यता! परन्तु भाई! तूं व्यर्थ में ही शोक न करना, भूल कर भी दुःखी मत हो। वर्ना चिन्ता तुझे खा जायगी। हिम्मत रख और धैर्य से काम ले। छ: मास पश्चात् राजा के दामाद का आगमन होगा, तब उससे मिलना। वह अवश्य ही तुम्हारा दुःख दूर करेंगे।" धनसार ने भीमसेन को आश्वस्त करते हुए कहा और भीमसेन को आशा की किरण दिखाई। ___ भीमसेन को थोड़ा ढाढस बंधा। वह आशान्वित हो छः मास व्यतीत करने का प्रयास करने लगा। समय व्यतीत होते ही राजा के दामाद जीतशत्रु का आगमन हुआ। भीमसेन के सुनने भर की देरी थी, कि वह अविलम्ब उसके पास गया और पुनः अपना वृतान्त सुनाया। “भाई भीमसेन! मैंने तुम्हारा वृतान्त सुना। परंतु तुमने यह नहीं बताया कि तुम यहाँ कितने समय से हो?" राजन्! मुझे यहाँ आये लगभग एक वर्ष हो गया है। विगत कई दिनों से मैं आपकी ही राह देख रहा था।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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