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________________ प्रथम ग्रासे मक्षिका . 109 क्या पशु यहाँ तक कि देव-दानव, सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवाणु, विशालकायः जीक उन सबको ही उसकी सत्ता नत मस्तक हो शिरोधार्य करनी पड़ती है। सृष्टिं में रहे प्रत्येक जीव को अपनी योग्यतानुसार ही फल की प्राप्ति होती है। कहीं कम ज्यादा का सवाल ही नहीं उठता। अगर ऐसा होता तो जैसे कुवेर तो महादेव का अभिन्न हृदय मित्र है! फिर भी महादेव शिव को मात्र मृगचर्म से ही काम चलाना पड़ रहा है। कर्म सत्ता के आगे किसी का भी जोर नहीं चलता। यदि हम अपने शरीर के अंगोपांग का सूक्ष्म निरीक्षण करें तो वहाँ भी कर्म सत्ता को न्याय करते ही पायेंगे। हमारी सम्पूर्ण देह छिद्रयुक्त है, किन्तु मध्य भाग में जो कुटिल है, उक्त कर्ण में अनेक प्रकार के आभूषण धारण किये जाते है। नयन शरीर का एक अत्यन्त उपादेय और महत्वपूर्ण अंग है, जो पूरे शरीर का संचालन करती है। परंतु आभूषण के स्थान पर केवल काजल ही नसीब होती है। कविगण प्रायः उद्घोष करते है : “ऐसे कुटिल स्वभाव वाले देव को धिक्कार हो।" सूर्य व चन्द्र इस जगत के नेत्र हैं। किन्तु उन्हें निरन्तर भ्रमण करना पड़ता है। उन्हें भला क्षण भर के लिये भी विश्राम कहाँ? अविरत परिक्रमा करनी पड़ती है। वास्तव में इस ब्रह्माण्ड में दैव गति को पहचान सके ऐसा कोई शक्तिशाली व्यक्तित्व है ही नहीं। जहाँ दैव ही फलदाता हो, वहाँ बड़े बड़े महारथी, योद्धा, नवाबों एवम् धनपतियों का जोर नहीं चलता। अतः दैव की उपेक्षा कर जो काम करते है वे प्रायः निष्फल होते है। जब कि जिसका भाग्य ही उठ गया हो, उसकी सहायता भला कौन करेगा? दुःख की अवस्था में भाई-बहन, माता-पिता, बन्धु-बान्धव, मित्र, यहाँ तक कि पत्नी-पुत्र तक किसी के काम नहीं आते। कितने ही साथी-संगी क्यों न हो, परंतु दुःख का भार तो स्वयं को ही उठाना पड़ता है। अरे, गुनगुन करते काले भौरे कमल पुष्प का सुख पूर्वक रसपान करते हैं। किन्तु सुन्दर शुभ्र वर्णीय राजहंस को सरोवर जल पर रही शैवाल का सेवन कर ही जीवन यापन करना पड़ता है। दैव की ऐसी विचित्र लीला मन में खेद उत्पन्न करती है। व्यवहार, न्याय व कीर्ति के जानकार भले ही विविध प्रकार के व्यापार एवम् प्रवृत्तियों करते हों, परंतु उसका फल तो अन्त में दैवाधीन होता है। समस्त देवी देवताओं ने मिलकर समुद्र मंथन किया। किन्तु उसमें निकले रत्न, हीरा, मोती व माणिक आदि बहुमूल्य वस्तुएँ सामान्य देव ले गये। जन-जन का मनोवाँछित पूरा करनेवाली महाशक्ति लक्ष्मी का विष्णु देवताने ही हरण कर लिया। और महादेव के हिस्से में केवल हलाहल विष ही आया। तभी ज्ञानीजनों का कहना है, कि * P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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