________________ 108 भीमसेन चरित्र ___ यह सुनकर आगन्तुक बोला : "अरे भद्र पुरूष! तुम कल क्यों नहीं आये? कल ही नरेश के दामाद ने कई लोगों को काम-धाम व धन प्रदान किया है। तुमने अच्छा मौका खो दिया। अफसोस अब तो तुम्हारा काम छ: मास के बाद ही होगा। तब तक तुम इस नगर में नरेश के पुनः आगमन की प्रतीक्षा करो। इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं है। यह सुनकर भीमसेन की आँखों के सामने अधेरा छा गया। वह कितनी उम्मीद व आशा लेकर आया था। किन्तु क्षणार्ध में ही सब पर पानी फिर गया। उसका मन मस्तिष्क बेचैन हो गया। “अरेरे! ओ भाग्य! तूं कितना निर्दयी है? क्या तुम मुझे केवल दुःख ही दोगे? इससे तो अच्छा है, कि तुम मुझे मृत्यु प्रदान कर दो। कहते है, कि मृत्यु कष्ट कर और सबके लिये असह्य है। परंतु अब तो मुझे यही महा दुःख प्रदान कर दो। यों बार बार निराश व हतोत्साहित होकर जीना मेरे लिये दुष्कर है। मेरा यह सौभाग्य है, कि मुझे मानव जन्म प्राप्त हुआ है। पूर्वभव में मेरे द्वारा किये गये सुकृत कार्यों के परिणाम स्वरूप ही मुझे राज्य मिला... राज वैभव प्राप्त हुआ और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ, कि इस भव में मैंने तनिक भी न्याय व नीति का उल्लंघन नहीं किया है। फिर भी आज मेरी ऐसी दुरावस्था हो गयी है। विवश होकर मुझे जंगल में दर-दर भटकना पड़ रहा है। बंजर भूमि पर सोना पड़ता है। इन सब दुःखों से मेरी पत्नी की भी दुर्गति हो रही है। मेरे पाप कर्मों का फल उसे भोगना पड़ रहा है। "अरे! भगवान्! मेरे दुःखों का तो कोई पार नहीं है। मुझे इन दुःखों से भला कब मुक्ति मिलेगी।" इस तरह विषाद से व्यथित हो वह भूमि पर बैठ गया। इसके अतिरिक्त भला वह कर भी क्या सकता था? जो मानव प्रभु का तिरस्कार करके कार्य करने का प्रयत्न करता है, वह असफलता का ही मुँह देखता है। चातक पक्षी प्यास लगने पर सरोवर के जल में चोंच तो मारता है, परंतु जल उसके पेट तक पहुँच नहीं पाता, बल्कि गले में रहे छिद्र से जल बाहर निकल जाता है। इससे चातक पक्षी की प्यास कभी तृप्त नहीं हो पाती। उपरोक्त प्रतिक्रिया में चातक का कर्म ही कारणभूत है। ___यूं भी जन्म तो भाग्यशालियों का ही प्रशंसनीय है, न कि किसी शूरवीर व पण्डित पुरूष का। महा पराक्रमी एवम् दिग्गज पण्डित ऐसे माने हुए पाँच पाण्डव, जो कईं विद्याओं में पारंगत थे... न्यायशास्त्र व शस्त्रों के ज्ञाता थे। फिर भी कौरवों से जुए में हार गये और बारह वर्ष के प्रदीर्घ बनवास का दुःख उन्हें भोगना पड़ा। - इन सब उदाहर से हम यह अर्थ न लगाए कि, कर्म-सत्ता का केवल पशु व मानव पर ही आधिपत्य होता है, अपितु उसकी सत्ता अबाध है, असीम है। क्या मानव, P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust