________________ प्रथम ग्रासे मक्षिका 107 उठ बैठा। उसने सुशीला की ओर दृष्टिपात किया। वह जाग ही रही थी। स्वामी को शय्या में उठ बैठा देख, वह भी उठ बैठी। उसने उन्हें प्रणाम किया। भीमसेन ने उसके माथे पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया। और बच्चों की निद्रा कहीं टूट न जाय, अतः मंद स्वर में सुशीला को आवश्यक सूचनाएँ दीं। सहसा सुशीला की आँखों से आँसु छलक पड़े। फिर भी वह काष्ठवत् मौन बैठी रही। भीमसेन ने उस पर स्नेहार्द्र एवम् करूण दृष्टिपात किया और विदा ली। सुशीला सजल नयन बहुत देर तक भीमसेन को जाते हुए देखती रही। प्रथम ग्रासे मक्षिका भोर की बेला थी, शीतल ठंडी बयार मंद मंद चल रही थी। वातावरण मन को / प्रफुल्लित एवं उल्लसित कर रहा था उस वेला में सुशीला से विदा लेकर भीमसेन ने / परदेश गमन किया। सर्व प्रथम उसने श्रद्धा पूर्वक तीन बार नवकार मन्त्र का उच्चारण कर पूर्व दिशा की ओर करबद्ध होकर श्री सिमंधर भगवन्त की आराधना की। तत्पश्चात् कार्य में वाँछित सफलता प्राप्त हों, ऐसी प्रार्थना कर उसने नवकार मन्त्र का सतत जाप करते हुए प्रयाण किया। भीमसेन को पूर्ण आशा थी कि राजा अरिंजय उसके दुःख-दारिद्र को सदा के लिये दूर कर देगा। इसी उमंग व आशा ने मानों उसके पंख लगा दिये हों। वह मंजिल पर मंजिल काटता निरन्तर आगे बढ़ रहा था। प्रातः उसे दुपहर तक लगातार प्रवास करने के उपरान्त वह किसी बावड़ी के किनारे बैठ कर अथवा वृक्ष की शीतल छाया में अपनी थकान उतारता और दोपहर ढलते ही पुनः अपने पड़ाव के लिये निकल पड़ता। रात में किसी धर्मशाला, मंदिर, चबुतरा या खुले आकाश के तले जमीन पर सो जाता। जब कभी क्षुधा के मारे व्याकुल हो उठता तो रास्ते में लगे फल फूलों से वह अपनी क्षुधा को शान्त करता और एकाध सरोवर, नदी या बावड़ी का ठंडा जल पीकर गुजर कर लेता। इस प्रकार चलते चलते एक दिन वह प्रतिष्ठान नगर के सिवान में आ पहुँचा। वह प्रस्तुत नगर एवं नगर वासियों के लिये बिलकुल अपरिचित था। तथापि मनोवांछित पूर्ण करने के लिये राजा अरिंजय की भेंट करनी जरूरी थी। अतः उसने वहाँ से गुजरते एक आगन्तुक से पूछा : "हे महानुभाव! मैं एक विदेशी दुःखी इन्सान हूँ। पूर्व भव के दुष्कर्मों के कारण मैं बुरी तरह मुसीबतों से घिर गया हूँ। और विवश होकर अपना नसीब आजमाने यहाँ आया हूँ। मैंने सुना है कि आपके नगर का राजा बड़ा दयालु है। वह दीन दुःखीयारों की प्रायः सहायता करता है... उनका दुःख दूर करता है। अतः हे भाई, नरेश से भेंट करने का मुझे कोई उपाय बतायेंगे तो बड़ा उपकार होगा।" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust