________________ 106 भीमसेन चरित्र संभावनाएँ हैं। हे वल्लभे! इतने समय तक तुम यहीं निवास कर प्रभु का स्मरण करना। में शीघ्रातिशीघ्र धन कमा कर लौट आऊँगा। तू इन बालकों की रक्षा करना। हमारा असली धन तो हमारी ये सन्तान ही है।" वे दोनों परस्पर बतियाही रहे थे, कि केतुसेन देवसेन रोते हुए वहाँ आ पहुँचे। वस्त्र मलीन हो गये थे, आँखे निस्तेज थीं तथा मुख पर क्लान्त भाव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। आते ही उन्होंने रूआसे स्वर में पूछा : “पिताजी! पिताजी! आप हमें छोड़ कर कहाँ जा रहे हो? देशान्तर तो सुखी व्यक्ति ही जाता है। यदि आप देशान्तर जाना ही चाहते है तो पिताजी हमारा सिर धड़ से अलग कर दीजिये। फिर निश्चिंत होकर चले जाना।" अपने पुत्रों की ऐसी दीन वाणी सुनकर भीमसेन का हृदय भारे पीड़ा के विदीर्ण हो गया। अलबत उसकी स्वयं की इच्छा भी बालकों को छोड़कर जाने की कतई नहीं थी। वह ऐसी संकट की घड़ी में एक पल के लिये भी अपने परिवार को आँखों से ओझल नहीं करना चाहता था। परंतु इसका दूसरा कोई हल नहीं था। वह देर तक प्यार से बच्चों को पुचकारता रहा और तब उन्हें समझाते हुए बोला : “नहीं जाऊँगा बेटे! नहीं जाऊँगा तुम निश्चिंत होकर आराम करो।" रात्रि में दोनों ही बालक पिताजी के वचन पर विश्वास कर गहरी नींद सो गये। इधर रात्रि के अन्तिम प्रहर में बालकों को गहरी नींद में सोते देखकर भीमसेन शय्या में Vinirmal हरि सोगरा तूं इन बालकों की रक्षा करना “मैं भाग्य आजमाने के लिए ईछा न होते हुए भी तुम सभी को छोड़कर जा रहा हूँ धन लेकर शीघ्र वापिस लौटूंगा"। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust