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________________ नहीं जाऊँ बेटा! 105 संस्कारों से अनभिज्ञ रह जाता है। ठीक वैसे ही जो शास्त्रवेत्ता पंडितों की सेवा नहीं करता, उसकी बुद्धि का विकास कभी नहीं होता। वह सदैव संकुचित दृष्टिकोण और असहिष्णु प्रवृत्ति का बनकर रह जाता है। जिस प्रकार तेल की बूंद जल में गिरने पर फैल जाती है, उसी प्रकार देशान्तर भ्रमण करनेवाला व्यक्ति बुद्धिमान एवम् विविध संस्कारों से युक्त होता है। परंतु इसके विपरीत जो पुरूष आलस्यवश एक ही स्थान पर अड्डा जमाये बैठा रहता है, वह दीनता और हीनता का शिकार होता है। नीतिशास्त्र भी यही कहता है कि : 'देश-विदेश भ्रमण करनेवाले नीत नवीन कौतुहलों का दर्शन करते है और व्यापार वाणिज्य कर जब धन कमा कर देश लौटते हैं तब प्रतीक्षारत उनकी पत्नी उसका बहुत आदर भाव से भावभीनी अगवानी करती है। समाज में उसका बड़ा नाम होता है और लोग उसका सम्मान करते है। परंतु जो पुरुष (कापुरूष) घर में ही घुसे रहते है, किसी भी प्रकार का उद्यम नहीं करते और प्रायः मक्खी मारते बैठे रहते है। ऐसे पुरूष निर्धनता को प्राप्त करते है। वह अपनी पत्नी एवं स्वजन परिजनों द्वारा भी उपेक्षित व अपमानित होते हैं। प्रायः ऐसे पुरूष भीरू होते हैं। अन्यजनों से भेंट करने में भी उन्हें शर्म का अनुभव होता है। ऐसे पुरूष, कुएँ के मेंढ़क के समान होते है। जिसकी दुनिया कुएँ की चार दिवारी तक ही मर्यादित होती है। विशाल संसार के कौतुक वे न तो देख सकते है, न ही समझ सकते। देशाटन करने से नये तीर्थों की यात्रा का लाभ मिलता है। स्थान स्थान पर नवीन परिचय के अवसर मिलते हैं। अनेक विध विलक्षण अनुभवों का साक्षात्कार होता है। परिणाम स्वरूप बुद्धि का विकास होता है। 'प्रयत्नेषु परमेश्वरम्।' की भाँति प्रयल करने से धन की प्राप्ती होती है। ऐसे अनेकों लाभ देशान्तर में होते है। ___ अतः हे आर्ये! जब तक तुम मेरे वियोग के दुःख में समय व्यतीत करोगी तब तक मैं धन कमा कर पुनः लौट आऊँगा।" जैसे जैसे भीमसेन जाने की बात करने लगा सुशीला का हृदय शोकमग्न होता गया। पति वियोग की कल्पना मात्र से ही उसका हृदय रो पड़ा। उभड़ते हुए आँसूओं को बड़ी कठिनाई से रोकते हुए वह अवरूद्ध कंठ से बोल पड़ी : "हे स्वामिन्! दुःख की इस घड़ी में आप हमें छोड़कर जाएँगे, यह कहाँ तक उचित है? स्वस्थ शरीर को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं होती। किन्तु हे नाथ! दुःख में तो कुटुम्बीजन ही औषधि का कार्य करते है। अतः स्वामी! हमें छोड़ कर देशाटन करने के बजाय अपने साथ ले चलो।" सुशीला के साथ आने की बात सुन कर भीमसेन ने कहा : प्रिय। तुम्हारी बात सत्य है। परंतु सबको भला किस प्रकार अपने साथ ले जा सकता हूँ। सम्भव है वहाँ उच्छृखल व उद्दण्ड सैनिकों के साथ भी रहना पड़े। वहाँ उनकी बस्तियाँ ही अधिक हो। अतः ऐसे स्थान पर परिवार के साथ रहना उचित नहीं है। कई कठिनाइयाँ आने की P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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