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________________ 104 भीमसेन चरित्र क्या बात है? निश्चिंत होकर कहो? मैं हर सम्भव तुम्हारी सहायता करूगा। आगन्तुक से सहानुभूति के दो शब्द सुनकर भीमसेन ने अपनी करूण कहानी सुनायी। उसकी हृदय द्रावक कथा सुनकर आगन्तुक का हृदय सिहर उठा। 'अरेरे! मानव की यह दुर्दशा आह! विधि का कैसा विधान? भाई वास्तव में तुम्हारी व्यथा असहनीय है। भगवान करे और ऐसे दुर्दिन देखने की बारी किसी की न आये। अलबत्त, इससे मुक्त होने के लिये मैं एक उपाय बताता हूँ, जिससे तुम्हारी दुरावस्था ही समाप्त हो जाय और सदा के लिये तुम्हारी निर्धनता मिट जाय। यहाँ से कोई चार योजन की दूरी पर एक नगर है प्रतिष्ठानपुर। अरिंजय वहां का राजा है। उक्त नगर में अनेको धनाढ्य एवं उदार हृदय व्यक्ति बसते है। राजा अरिंजय वास्तव में दयालु एवं परोपकारी वृत्ति का शासक है। वह प्रति छः माह अनन्तर अपनी प्रजा के दर्द का पता लगाने के आशय से छद्म वेश में नगर-भ्रमण करता है और अनेक विध दीन-दुःखियों की सहायता करता है, गृह विहीन व्यक्ति को घर देता है, भूखे को अन्न देता है। अपंगो व अनाथों का वह संरक्षण करता है। अपने कर्मचारियों में वह योग्य पारितोषिक वितरित करता है। जीवन निर्वाह के लिये प्रत्येक कर्मचारी को बतीस रूपये प्रति मास देता है। जब कि राजा अरिंजय का दामाद तो दान देने में उससे भी एक कदम आगे है। वह प्रति माह चौसठ रूपये अपने कर्मचारियों को पारिश्रमिक देता है। उसका नाम जितशत्रु है। अतः हे भद्र, तुम सभी तर्क-कुतर्क परित्याग कर राजा अरिंजय और उसके दामाद के यहाँ तुरन्त पहुँच जाओं। तुम्हारा कल्याण ही होगा। तद्नुसार भीमसेन ने आगन्तुक का आभार माना और मन ही मन वहाँ जाने का निश्चय कर वह सुशीला के पास आया। उसने सारी हकीकत से अवगत किया। सुशीला के आनन्द का पारावार न रहा। उसने प्रभु को लाख-लाख धन्यवाद दिया। ___"प्रिये! अगर तुम मुझे प्रतिष्ठानपुर जाने की अनुमति दो तो मैं वहाँ हो आऊ। दो-तीन माह के अनन्तर मैं पुनः यहाँ लौट आऊंगा। तब तक बालकों के साथ तुम यहाँ ही रहो।" सुशीला भला क्या उत्तर देती? यदि वह प्रस्थान की अनुमति देती है तो पति-विरह के अनल में जलना पड़ता है। अनजाने नगर में अकेले रहकर बालकों का पालन पोषण करना पड़ता है। और देशाटन की अनुमति न दें तो दुःख-दरिद्र से मुक्ति असम्भव है। वह असमंजस में पड़ गयी। फलतः उससे उत्तर देते न बना। केवल मौन साधे वह बैठी रही। . सुशीला को यों मौन पाकर भीमसेन ने उसे समझाते हुए कहा, “तुम तनिक भी चिन्ता न करो। कार्य पूर्ण होते ही शीघ्र ही लौट आऊँगा। तुम भला कहाँ नहीं जानती की जो पुरुष देशाटन नहीं करता वह नये रीति-रिवाज, नवीन भाषा और विविध P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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