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________________ भद्रा की कलह-लीला 101 देवसेन व केतुसेन तो यह सब देख मारे घबराहट के सन्न रह गये। उनकी समझ में खाक भी नहीं आ रहा था, कि सेठानी हमारे माता पिता को भला क्यों कोस रही है और बढ़ा चढ़ा कर गाली गलौच क्यों कर रही है। वे सज्ञाशून्य बने हिचकियाँ भर रो रहे थे। देवसेन ने रोते रोते माँ से पूछा : “माँ! माँ! ये लोग आपको बाहर क्यों निकाल रहे है?" किन्तु भीमसेन व सुशीला भला. इसका क्या जवाब दे? उन्हें स्वयं ही कहाँ पता था, कि उन्हें कहाँ जाना है? कर्म के आदेश की ही वे बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। भाग्य जहाँ ले जाय वहाँ जाना था। फिर भी सुशीला ने कहा : ___"वत्स! अपना लेनदेन पूरा हुआ। यहाँ से हमारा अन्न जल उठ गया। अब तो भाग्य जहाँ ले जाए वहाँ ही जाना है। इधर सेठजी का अन्तर इनकी यह दुर्दशा देखकर दया से अभिभूत हो गया। उसने मन ही मन विचार किया कि, ऐसे संकट के समय में भला ये बेचारे कहाँ जाएँगे? क्या खाएँगे? इन फूल जैसे कोमल बालकों का क्या होगा? यह सोचकर चोरी छिपे खाने का कुछ सामान लेने घर के भीतर गये और भोजन सामग्री की गठरी बाँधकर बाहर निकल ही रहे थे कि, भद्रा ने देख लिया। फिर क्या था, बन्दर की तरह तेजी से झपट कर उसने सेठजी से पोटली छीन ली और जलती हुई लकड़ी से उन पर प्रहार किया। प्रहार के कारण उनका मन और अधिक व्यग्र हो गया। वे तुरन्त ही हाथ को सहलाते हुए चुपचाप दूकान चले गये। _और इधर भद्रा चद्दर तान कर सो गयी, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। अल्पावधि पश्चात् भीमसेन दूकान पहुँचा और सेठजी के आगे हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाने लगा : "मेरे पर दया करें सेठजी, और कुछ नहीं तो भोजन के लिये मुझे कुछ राशि ही दे दीजिये। मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भुलूंगा।" भीमसेन की इस माँग पर सेठ विचार मग्न हो उठे। उन्होने यह निश्चय कर रखा था, कि दूकान से कभी भूलकर भी एक पैसा भी नहीं निकालेंगे। और टेंट में एक ढेला भी था नहीं। ठीक वैसे ही घर पर जो राशि थी, उसकी सूचना भद्रा सेठानी को पहले से ही थी। अतः वे धर्म संकट में पड़ गये। परिणाम स्वरूप उनसे कोई जवाब देते नहीं बना। वे मौन धारण करके रह गये। सेठजी आपतो सज्जन व दयालु है। और सज्जन पुरूष प्रायः दीन-दुःखियों की सहायता करते हैं... उन पर दयाभाव रखते है। हे दयालु, मुझ पर दया करो और भोजन का कुछ प्रबन्ध करने का कष्ट करें। यदि आप भोजन का प्रबन्ध नहीं कर सकते तो मेरे वेतन में ही बढ़ोतरी कर दें। ताकि मेरा गुजारा भली भाँति चल सके। मैं इतने से ही सन्तोष मान लूंगा। सचमुच सन्तोष से बढकर इस जगत में अन्य कोई सुख नहीं है। आप विश्वास करें, बदले में मैं आपका दिया हुआ प्रत्येक कार्य खूब मन लगाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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