________________ . 100 भीमसेन चरित्र और फिर तनिक विचार कीजिए यह बिचारे हमारे पास मांगते ही क्या है। हम जो देते है उसी में सन्तोष मान कर घर व दूकान पर काम करते है। भद्रा ने देखा कि, बाजी उसके हाथ से निकलते देर नहीं लगेगी और अगर अभी वह शांत हो गई तो, बना बनाया खेल खत्म हो जायेगा। फलतः वह ऊँचे स्वर में रोने लगी, "रहने दो, रहने दो! मैं तुम्हारे लक्षण अच्छी तरह समझती हूँ। आप नीच के रूप पर लुब्ध हो गये हो। अतः उसीका पक्ष ले रहे हो। पर अब मैं हर्गीज ऐसा नहीं होने दूंगी। इन्हें इसी क्षण घर से बाहर निकाल दो। वर्ना मैं सर पटक-पटक कर अपने प्राण दे दूंगी" सेठ तो यह सब सुनकर हतप्रभ से हो गये। उनकी पत्नी ही उनके चरित्र पर दोषारोपण कर रही थी। ___वह भला कैसे शिकायत करे। उन्होंने यह सब देखा कि, भद्रा के आगे उनकी दाल नहीं गलेगी तो कुछ सोचकर अपने शयनगृह में चले गये। इधर भद्रा ने तुरन्त ही सुशीला व उसके बच्चों को धकियाते हुए दहाड़ कर कहा : "चलो, निकलो! घर से बाहर निकल जाओ। खबरदार फिर कभी मेरी चौखट पर आने की हिंमत भी की तो।" भीमसेन इस अपमान को सहन नहीं कर सका। कुलीन व्यक्ति दुःख सहन कर सकता है, गरीबी का बोझ उठा सकता है। परंतु कलंक व अपमान कभी सहन नहीं कर सकता। फलतः भीमसेन भी व्यथित हो, भग्न हृदय अपने बालकों व सुशीला के साथ वहाँ से चल पड़ा। Sawantwad RA हार सोहरा झूठे आरोप लगाकर घर से बाहर नीकालती हुई शेटाणी और अपमानित होकर गाँव छोड़कर जाते हुए भीमसेन - सुशीला एवं दोनों बालक। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust