________________ भद्रा की कलह-लीला दिया। मेरे कीमती वस्त्रालंकारों की चोरी कर गयी और अब यह मेरे पति पर जादू-टोना करने पर तुली हुई है। भद्रा का यह नया रुप देखकर भीमसेन, सुशीला व सेठ पल दो पल के लिए अचंभित हो गये। हद हो गयी मानों काटो तो खून नहीं। उसका पूरा शरीर सफेद हो गया। हृदय क्रन्दन कर उठा। चोरी का आरोप ले उसने समभाव से सहन कर लिया था। परंतु भद्रा द्वारा उसके चरित्र पर लगाया गया गालीच आरोप उसकी सहन शक्ति के बाहर था। वह यह आक्षेप सहन न कर सकी। फिर भी अपने आप को संयम में रखते हुए उसने अनन्य शांति एवम् विनम्रता से कहा : सेठानी माँ। आप ऐसा क्यों कह रही है, सेठजी तो मेरे लिए पिता तुल्य है और पिता-पुत्री में भी कभी ऐसे कुत्सित सम्बन्ध हो सकते है, इस तरह का आरोप कर आप मेरा व सेठजी का घोर अपमान कर रही हैं। सुशीला के इन शब्दों ने आग में घी का काम कीया भद्रा तो सर से पाँव तक सुलग उठी। उसने अविलम्ब निपटते हुए कर्कश स्वर में कहा। कुललांच्छनी कहीं की! आयी बड़ी पुत्री बनने वाली। अरे, मैं तुम्हारी किसी बात में आने वाली नहीं हूँ, समझी। तुम्हे तनिक भी शरम नहीं आती, ऐसी बात कहते हुए। कहां तुम नीच दासी और कहां हम लोग। इस तरह की मीठी मीठी बातें कर तुमने मेरे पति को वश में कर लिया है, मैं तुम लोगों के लक्षण अच्छी तरह जानती हैं। तुम लोगों का काम ही यह है एक तो चोरी तिस पर सिनाजोरी। क्या तुम्हारा पति मर गया है, जो मेरे पति पर डोरे डाल रही हो। मेरी ही चोरी कर मुझे ही आँखे दिखा रही है। हे राम, न जाने कितने घर इसने बर्बाद किये होगें? इधर भद्रा का कार्यक्रम चालु ही था। पूर्व कि योजनानुसार उसके स्वजन परिजन वहाँ आ धमके। उन्हे देखकर वह और भी जोर-जोर से रूदन करने लगी। यह सब देख भद्रा के पिताजी ने सेठ से कहा : "अरे सेठ। ऐसे दुष्ट प्रकृति के लोगों को भला अपने घर में कैसे पाल रखा है, इनको इसी क्षण घर से निकाल झगड़े फसाद की जड़ ही दो न? अपने श्वसुर की सलाह सुनकर सेठ ने तिल मिला कर कहा : "किन्तु ये लोग चोर उच्चके नहीं है। विधाता की बलिहारी है कि, इनकी आज यह दुर्दशा हुई है। वैसे ये अत्यन्त शांत व सहिष्णु है। हमें तो ऐसे गरीबों व दीन दलितों पर दयाभाव रखना चाहिए। तथा हर संभव उनकी सहायता करनी चाहिये। इसके स्थान पर मैं इन्हे घर से निकाल, दर-दर की खाद छानने के लिए निराधार छोड़ दूँ... इससे तो हमारे धर्म का अपमान होगा न। अरे, लक्ष्मी तो चंचल है पूर्वभव के शुभ कर्मों के प्रतिफल स्वरूप इस भव में इसकी प्राप्ति होती है और जो लोग इस जन्म में पुण्य व परोपकार के कार्य नहीं करते उन्हे कभी प्राप्त नहीं होती, बल्कि उनका परित्याग कर वह चली जाती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust