________________ 97 भद्रा की कलह-लीला सुशीला को थाली-कटोरी लाने का आदेश दिया। सुशीला थाली-कटोरी लेने गयी। किन्तु घर में हो तो उसे मिलती न? सेठानी सुशीला को खाली हाथ लौटते देख गुस्से से चिल्ला उठी? "खाली हाथ क्यों लौट आई? थाली कटोरी कहां है।" __ "वहाँ तो कुछ भी नहीं है, प्रत्युत्तर में उसे सुशीला ने कह।" “हें क्या कहा?" थाली कटोरी नहीं है? तो गये कहाँ? तुने ही तो सुबह रखे थे, फिर कहां गये?" __मुझे क्या मालुम बहनजी? सुशीला ने कहा। तो किसे खबर? क्या मुझे खबर है, कुलटा एक तो चोरी ऊपर से सीना चोरी। मैं बराबर देख रही हूँ कि, पीछले चार-पांच दिन से लगातार कुछ बर्तन गायब हो रहे है, परन्तु मैं चुप हूँ। मैंने उन्हें भी कुछ नहीं कहा। किन्तु आज मैं चुप नहीं रहूँगी। मैंने तुम्हे थाली कटोरे बाहर ले जाते हुए देखा है और अब ऊपर से झूठ बोलती हो। बोल! बर्तन कहाँ छुपाये है? बोलती क्यों नहीं? क्या मुँह में मूंग भर रखे है। सुशीला तो यह सब सुनकर स्तब्ध रह गई। वह मुह से एक शब्द तक नहीं बोली। सिर नीचा किये चुप चाप सुनती रही। भीमसेन भी अकल्पित बात सुनकर सन् रह गया। इधर सुशीला को इस प्रकार मौन खड़े देखकर भद्रा और जोर से दहाड़ी। बेचारी कैसे बोले? मुझे तो इसके लक्षण पहले से ही अच्छे दिखाई नहीं दिये। आज इसने बर्तनों की चोरी की है। कल शायद व मेरे गहनों की भी चोरी कर ले। ऐसी नोकरानी का भला क्या भरोसा।" फिर जैसे उसे कुछ याद हो आया हो इस तरह अभिनय करती हुई वह पुनः बोली : “मुझे अभी ही अपने गहने और कीमती वस्त्रों को देख लेना होगा, कहीं उनको भी तो नहीं चुरा लिया। ऐसी कमीनी का क्या कहना! यों कह कर उसने अपने आभूषण ढूंढ़ने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया। किन्तु उसके हाथ कुछ नहीं लगा। फलतः हृदय द्रावक रूदन करने लगी। अरे! इस बदमाश औरत ने तो मेरा सर्वस्व लुट लिया। मैं बर्बाद हो गयी। मेरे आभूषणों की चोरी हो गई! हाय! हाय! अब मैं क्या करूं अपने पिताजी को क्या जवाब दूंगी। . और भद्रा सेठानी जोर-जोर से रोने लगी। यों झुठमुठ रो कर वह सब लोगों की सहानुभूति बटोरने का प्रयास करने लगी। ___ भद्रा का कल्पांत सुन अड़ोस-पड़ोस के लोग इकठे हो गये। नाटक व नौटंकी के लिये भला आमन्त्रण की कहाँ आवश्यकता? अतः बिना बुलाये ही आनन फानन में लोग इकत्रित होने लगे और आपस में कानाफूसी करने लगे : क्या हुआ भद्रा सेठानी छाती पीट-पीट कर रो रही है। लोगों की ठठ जमी देख भद्रा सेठानी तो और भी जोर-जोर से रोने लगी। और रोते-रोते उसने गालियां की तमाशा झडी लगा दी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust