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________________ भद्रा की कलह-लीला नौबत ही आ जायेगी और तब उसे भिक्षा पात्र ग्रहण करने की स्थिति आ सकती है। अतः कुछ विचार कर लक्ष्मीपति ने सरोदा कहा : "अरे भाई! तुम काम कर रहे हो या बेकार चल रहे हो, कितने ही समय से तुमको वसुली का काम सौपा है। किन्तु तुम हो कि एक बदाम वसुल नहीं कर पाये हो,। इस तरह भला कैसे चलेगा और मैं तुम्हे वेतन किस बात का दूँ?" “सेठ साहब, में प्रतिदिन वसुली के लिए जाता हूँ और उनसे निवेदन करता हूँ कि, मालिक की रकम लौटा कर उन पर उपकार करो। परंतु मेरी बात तो कोई सुनता ही नहीं।" प्रत्युत्तर में भीमसेन ने शान्तिपूर्वक कहा। "अरे मूर्ख! भला इस प्रकार भी कोई उधारी वसुलता है, लेनहार से भला कभी ऐसा बोला जाता है? वह कौन होता है हम पर उपकार करने वाला? अरे खुद, उपकार तो हम उन पर करते है कि : उनको माल उधार में देते है। ऐसे लोगों को तो प्रायः धमकाना चाहिये, समय पड़ने पर कटु शब्दों का प्रयोग करना चाहिये। अरे उन्हे तो हमारे पांव धोकर पानी पीना चाहिये। इसके बदले तुम उनके सामने गिडगिड़ाते हो, तुमने शरीर अवश्य कमाया है हृष्ट पुष्ट कर लिया है! परंतु खोपड़ी मे बुद्धि का अंश तक नहीं है। बुद्ध बुधु ही रहे ऐसी स्थिति मैं भला किस तरह तुम्हे अपने यहां काम पर रख सकता हूँ? लक्ष्मीपति की बात सुन भीमसेन को दिन में ही तारे दिखायी देने लगे। लज्जा के IPED HATTINATI रिसोगा तुम एक बदाम भी वसुल कर नहीं पाते हो, किस बात का वेतन ,? “अरे मूर्ख! ऐसे कैसे चलेगा? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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