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________________ 94 भीमसेन चरित्र अतः उसे अन्यजनों की आज्ञा का पालन करने की बात भला कहां से अवगत होती? और उसके गले भी कैसे उतरती। परंतु कर्म की गति क्या नहीं कर सकती। जिसकी उसे स्वप्न में भी कल्पना न हो वह उसे विवश होकर करना पड़ता है। जो नहीं आता है वह भी सीखना पड़ता है। श्रेष्ठीवर्य लक्ष्मीपति का स्वभाव मृदु व दयालु था। वह प्रतिपक्षी की शक्ति व सामर्थ्य को वह भलिभाँती पहचान सकता था। भद्रा व लक्ष्मीपति के स्वभाव में जमीन आसमान का अन्तर था। फल स्वरूप भीमसेन को उसने बड़ी लगन और धैर्य से दूकान के सभी कामों में पारंगत किया था। बिक्री कैसे करना, ग्राहक से कैसा व्यवहार करना, दुकान में माल कैसे व कहाँ रखना, माल का मूल्य क्या है और एक बार दूकान में आया ग्राहक माल लेकर ही जाय इत्यादि सभी बातों की सम्पूर्ण जानकारी लक्ष्मीपति ने भीमसेन को दे दी थी। तत्पश्चात् वह उसे उधारी वसूल करने के लिए भेजने लगा। व्यापार में वसूली का कार्य बड़ा ही कठिन होता है। उधार देकर रुपया वसूल करना एक टेढ़ी खीर है। भीमसेन को भी यह सब अनुभव हो रहा था। इसके लिए व्यक्ति को एक ही स्थान पर बार-बार चक्कर लगाने पड़ते है। उधारक की घंटो प्रतिक्षा करनी पड़ती है। उसे समझाना पड़ता है। तो कभी कभार कटू शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। उसे डराना धमकाना पड़ता है तो कहीं व्यापारी द्वारा कही गयी कडवी बात भी सुननी पड़ती है। लक्ष्मीपति सेठ की भी नगर के कई व्यापारीयों में उधारी बाकी थी। कुछ तो विगत कई माह से वसुल न हो पायी थी। अतः सेठ उसे नियमित रुप से वसुली के लिए भेजता रहता था। किन्तु भीमसेन जहाँ भी जाता, वसुली करने में असफल सिद्ध होता। जहां भी जाता वहां से खाली हाथ लौट आता और भला वह करता भी कैसे? वह स्वभाव से ही शर्मिली प्रकृति का जो ठहरा, तिस पर मांगना तो उसके स्वभाव में नहीं था। जहां भी जाता वह केवल इतना ही कहता : सेठजी ने पैसे मंगवाये हैं तत्पश्चात् न एक न दो! ऐसी नम्र वाणी सुनने का भला कौन आदि होगा? लोग उसकी पीठ पीछे मजाक उड़ाते और कई कई बार चक्कर लगवाते। कई दिनो तक भीमसेन जब एक दमड़ी भी वसुल नहीं कर सका तब एक बार सेठजी का मिजाज बिगड़ा, आखिर वह भी तो एक व्यापारी ठहरे न। व्यापारी और बानिया हर बात का हिसाब रखता है। इसी तरह वह मन ही मन सोचने लगा कि, मैं इसके पूरे परिवार के भरण पोषण का खर्च उठाता हूँ तो उसे भी मेरा अमुक काम तो करना ही चाहिए। अगर उससे इतना काम भी नहीं होता तो, कल दुकान बन्द करने की P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036420
Book TitleBhimsen Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1993
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size241 MB
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