________________ भद्रा की कलह-लीला रख कर उन्हें कुछ नहीं होने देती थी। अगर वह इसी प्रकार रोती रही तो भद्रा उसे चैन से सांस नहीं लेने देगी? बल्कि उसका जीना हराम कर देगी। अगर वह चोरी चुपे दो चार आँसु बहा लेती। ___ वह अपने दुःख की बात भूल कर भी कभी भीमसेन से नहीं कहती थी। सब कुछ स्वयं ही समभाव से सहन कर लेती। भद्रा जब कभी उसके बालकों को डराती धमकाती तब उसका हृदय दो टूकडे हो कर रह जाता। मारे वेदना के वह झिड़क उठती और रात में दोनों कुमारों को उत्संग में लेकर फक्क-फक्क कर रोती रहती। ठीक वैसे ही हृदय से लगा कर दुलारती प्यार करती। साथ ही मन ही मन ईश्वर से प्रश्न करती कि मेरे किन पापों के कारण मेरे इन मासूम बालकों को यह सजा मिल रही है। किन्तु ईश्वर ने कभी कोई उत्तर दिया है, बल्कि यह तो सब कर्म का फल है, पूर्व भव में कभी कोई दुःकर्म किये होंगे, जिसका फल इस भव में भोगना पड़ रहा है। अलबत यह सब अपने कर्मो का ही दोष है। इस तरह विचार कर प्रत्यहः अपने मन को मनाती रहती। थोडेदिन में ही भद्रा ने सुशीला व उसके बालकों की दशा अधमरे ढोर की नाईं कर डाली। प्रातः काल से ही वह सुशीला को बैल की तरह काम में जोत देती। प्रातः उसे अनाज पीसने के काम में लगा देती। पीसाई पूरी होते ही उससे बाकी काम कराती। तत्पश्चात् बावड़ी या कुएँ से पानी लाना। बरतन, झाडा साफ करना, सुखा-सुखा नास्ता नाश्ते के बाद नदी पर कपड़े धोने भेजती। वहाँ से आने पर दोपहर में जुठे बरतन मांजने का आदेश देती। इन सब कामों के बदले वह उसे नाप तौल कर भोजन देती। कपड़ो को समेटना, पानी भरना, जुठन साफ करना और अनाज बिनना आदि एक के बाद एक घर का कार्य निकलता ही जाता। यहाँ तक की रात हो जाती, परंतु काम का अन्त न आता। फिर भी भद्रा को उस पर दया नहीं आती थी। रात में छोटे बच्चों से शरीर का मर्दन करवाती पथारी करवाती और शय्या लगाती और रात देर गये उन्हें सोने के लिए भेजती। जिस पर भी प्रत्येक काम के साथ गालियाँ की झड़ी तो लगी ही रहती। कभी-कभी वह बालकों पर अपना हाथ भी साफ कर लेती थी। बालक तो नादान होते है, उन्हें भला क्या कहा जाय? वे तो कमल, के फूल के समान है। भद्रा के मन में ऐसे विचार भूल कर भी कभी आते नहीं थे। वह उनसे भी नाना प्रकार के काम लेती और नित्य प्रति उन्हें डराती-धमकाती रहती। इस तरह भद्रा के सेठानीपन और सुशीला की पराधीनता का समय व्यतीत होता जा रहा था। भद्रा की कलह-लीला ___भीमसेन का जन्म एक उत्तम राजकुल में हुआ था। वह शैशव से ही सुख वैभव के बीच फुला फला था। राज सिंहासन पर आरूढ़ होने के पश्चात् तो उसके भाग्यमें हूक्म देने का ही काम था। . मा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust