________________ // 52 // IN अरुच्या विविधाहारं, भुञ्जानोपि न सुस्थतां / यया याति तथा लीनो, में पापे पापभीलुकः // 73 // आगमो त मोक्षमाप्नोत्यविस्तः, क्षपकश्रेणिमाश्रितः / पापभीर्यतिनैवानन्तशोपि न चेत्तथा // 74 // पापभीर्म- रात्रिभोजनद्वारककृति-सहारम्भोष्या अर्धासिध्यति ध्रुवं / पुद्गलावर्त्ततः साधु-र्न कोटीभ्रान्तितोऽपि च // 75 // श्राद्धानात्पाप- IN/ परिहारः सन्दोहे भीरुत्वं, श्रद्धानं धर्मकारणं / नाश्रद्धानो भवेद्मीरः, न कदाचित्तथेतरः // 76 // अविरतोपि यन्नेति, व परत्राशुभजन्मनि / प्रभावोऽसौ समस्तोपि, पापभीतेन चान्यथा // 77 // मैनिकाधा अवापुर्ये, केवलं विश्वISI वेदकं / पापभीतेरते तत्र, किमन्यत्कारणं भवेत् // 78 // मोषकः स्वामिविद्रोही, वनितायाश्च घातकः / तिरस्कर्ता मुनेः प्राप, पापमीतेः शुभां गतिम // 79 // उत्सृज्य सर्वनियना-नुपद्रोता विभोरपि / अवाप निर्मला जाति, तान्यत्किमु कारणम् ? // 8 // अनिघ्नन्याणिनं कश्चित् , कूपमध्यगतोऽपि हि / कालसौकरिको लिप्तस्तत्रान्यत्किमु कारणम् 1 // 81 // प्रत्यहं जिनभक्तोपि, महद्धर्था वन्दको विभोः। अवाप- HI | मरकं घोरं, तवान्यत्किमु कारणम् // 82 // अप्रधृष्यतपस्त्तप्ता श्वभ्रगोऽतिशयश्रुतः / कुरुटोत्कुरुयुगली, तत्रान्यक्किम कारणम् // 83 // उपस्रष्टा जिनेन्द्रस्य, भूरिजन्तुविहिंसकः / सम्यक्त्वं निर्मलं प्राप, कारणं तत्र पापभीः // 84 // इत्यवेत्य जिनराण्मतानुगाः, सद्गुणान्दुरितभीतिसङ्गतेः। प्रत्यहं | दुरितबन्धभीलुका, मानसं कुरु सत्पथानुगम् // 86 // इति पापभीतिः। रात्रिभोजनपरिहारः (26) रात्रिभोजनदोषज्ञा, नादन्ति घटिकाद्वये / दिनस्याद्यान्तके यस्मान, नक्तत्वेनाऽपि तन्मतम् // 1 // प्रत्याख्यानं नमस्कार-सहितस्य भवेत्तदा / तेनैव तन्निशात्यन्तो, गदितो देवसरिणा // 2 // मुहर्तमान- 1 // 52 // MP.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust