________________ आगमो. IN // 53 // तैरवो मानुजान् देवा-नात्मीयांश्च चतुर्विधान् , उपसर्गान् सोढवानात्मा फ० // 54 // दुर्जनोक्ति- II | पापभीतिः द्वारककृति- शराघातो, ज्वलितस्ताडनामिना / शान्तिं च विविधां विभ्रत् फ० // 55 // जातिलाभकुलैश्वर्य-बलरूपतपः. सन्दोहे श्रुतैः / सम्पन्नो मार्दवं धर्त्ता, फ० // 56 // पुत्रपौत्रादिनाशेपि, मरणस्यापि वागमे / क्षुत्क्षामो नार्जवं जह्यात् , फ० // 27 // त्यक्त्वा पुत्रकलत्रादि, धनधान्यालयादि च / विभृयान्न च कोपीनं, फ० // 58 // महाव्रतधरो धर्मी, समिती गोपने रतः। अभिग्रहे रतो घोरे, फ० // 59 // स्वाध्यायं विदधानोपि, चतुःकालं सदा ऋजुः / वाङ्मयानां जिनोक्तानां, फ० // 60 // षण्मासान्तं चतुर्थादि, तपः कुर्वस्त्य- II जन्समाः। विकृतीर्लीनकरणः, फ० // 61 // हा हन्त ! गर्भधरणं खलु दुःखहेतुः, स्वार्थैकलीनमखिलं जनकादि दृष्टं / पुष्टं शरीरमशुचीतिविचित्रभावस्तन्निष्फलं निखिलमेव न. पापभीतिः // 62 // विविधैर्वाक्यसम्भारै-भव्यसत्त्वान्विबोधयन् / सद्धर्माध्वन्यानयिता, फ० // 63 // प्रत्यहं स्वर्णराशीनां, दाता मार्दव| संयुतः। दीनानाथेभ्य आयाद्भ्यः , फ० // 64 // पापं दुःखकृदेव स्यात्, पुण्यादेव सुखोद्भवः।। | न तत्र कापि शङ्कवं, सर्वशास्त्रेषु संस्थितेः // 65 // कालकूटान्न कुत्रापि, जीवनं सुधया मृतिः। तथा | सुखोद्भवो नास्ति, पापादशुभपुद्गलात् // 66 // अनुग्रहोपघाताथै, कर्म तत्पौद्गलं भवेत् / आत्मनां काय-ल सम्बन्धो, यथादृष्टेऽप्यसौ तथा // 67 // पापोदयादेव हिंसा-द्यादरः पापसम्भवः / अरघट्टघटीयन्त्रेतिवद म भ्रान्तिर्मवेऽङ्गिनाम् // 68 // सिद्धिरस्य जिनोक्तत्वात्तत्त्वतोऽतीन्द्रियत्वतः। सर्वस्मिँस्तद्विधौ मानं, तादृशि | वचनं भवेत् // 69 // तथापि . दुःखिहिस्रादि-बाहुल्याद्विरलत्वतः। सुखिव्रतयुजां. दृष्टे-नुमान न किं भवेत? // 70 // सुषमारे सुखालीने, किमनेके न दुःखिनः / न च तदा पापोद्भवो भरि, न चासत्यं ततो. इदा // 71 / / कुर्वन्पापमपि प्राणी, चित्रं तेन न लिप्यते / पद्मपत्रं जले मग्नं, नाई पापभीरुस्तथा // 72 // // 51 // DIP.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus