________________ . भागमो. // 50 // Ki जीवजिनाचार्या-दत्तत्यागः सभावनः। कारणानुमती नास्य, फ०॥३२॥ वैक्रियौदारिकाङ्गानां, प्रवीचा | रस्य वर्जनं / त्रिभित्रिधाऽममीभावः, फ० // 33 // त्यागो गाय॑द्विषोः, पञ्चस्विन्द्रियार्थेषु वस्तुनः / पापभौतिः द्वारककृति- यमानुपकारस्य द्राक्, फ० // 34 // परिहारो निशाभुक्ते-राहारेषु चतुर्व पि / सन्निधेश्वारसाहारः, फ० // 35 // - सन्दोहे अभ्युत्थानमभिगमोऽञ्जलिः स्वसनं नतिः / अनुगमः क्रिया सर्वा, फ० // 36 // गृहेवस्थितिरारानयानमङ्गादिसंवृतिः। परेषां प्रेरणं नैव, फ० // 37 // वस्ते वासोऽनवं शीर्ण, कर्मादानानि संत्यजेत् / सकृत्प्राशुकमप्यत्ति, फ० // 38 // नान्यतप्तिन विपये, स्पृहा नो हिंस्ररक्षणं / अहोरात्रं श्रुते सङ्गः, DIF0 // 39 // रक्षन्मनोवचम्कायान, सामायिकत्रतातिः। क्षगकाले व्रतस्थायी. फ०॥४०॥ दिन पक्ष परं | दीर्घ, कालं स्यान्नियतो व्रते / सामायिकव्रतस्थो वा,फ० // 41 // सर्वथा पौषधं तिथ्यां, चतुर्धा विदधच्छूते। रतः प्रमार्जनालीनः, फ० // 42 // श्रद्धासत्कारयुक्छय्या-हृतिभैषजवस्त्रदः / यथाकालमनीष्यश्च, फ० // 43 // A युगमात्रविलोकी सैल्लोकक्षुण्णेऽध्वनि व्रजन् / सत्त्वं कश्चिन मर्दयति, फ० // 44 // मौनी मितोदितिर्वाचा, | सत्यसर्वप्रियोदितिः / वाचंयमवचोलीनः, फ० // 45 // द्विचत्वारिंशता दोपैभिक्षायाः पञ्चभिः शुचिं / / ग्रासे आहरन्नीरसं भक्तं, फ० // 46 // प्रमृज्य प्रतिलिख्यैव, गृह्णन्मुञ्चन् भियांहसां / संयमाङ्गं यदंगादि, IST फ० // 47 // शुद्धेऽजन्तौ तलेऽजन्तु, वस्तु जीवोद्भवो यथा / न, तथा व्युत्सृजेद्यत्नात् , फ० ॥४८॥न निजस्यापरेषां वा, चिन्ता विकालसम्भवा / समत्वे प्रवलं चित्ते, फ० // 49 // सञ्जानीते न कस्यापि, ब्रूयाद्वा नैव किञ्चन / अयथार्थ न वक्त्यर्थ, . फ० // 50 // आयात्युपसर्गसङ्घाते, न स्थानादिभिदा मनाक् / कायोत्सर्गक्रिया नित्यं, क० // 51 // क्षुत्तृट्छीतोष्णदंशारत्यङ्गनाचेलचारिताः। शय्यानषेधिकी10 याश्चाः,फ० // 52 // वधाक्रोशामयालाभतृणस्पर्शाऽऽदरागमाः / मलो मिथ्यात्वमज्ञानं, मित्यादि परीसहनं फल // 50 // :: | PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust L .