________________ आगमो- तथाच शङ्करोऽभाणीघदेकस्मिन्नसम्भवात् / व्यावृणोच्छङ्करो यच्च, तत्सर्वं जल्पितं मुधा // 13 // तथैवासम्भ- पापभीतिः al वीयश्च; जलादेर्मनुजोद्भवः / मृत्तिकायाच दृष्टान्ता, नैकान्ते ब्रह्मणि हताः // 14 // द्वैतं वैराग्यप्रोन्मा- I द्धारककृति थीत्यद्वैतं श्रीयते त्वया / चेन तयन्मुधा ज्ञानं, न सद्वैराग्यकारणम् // 15 // वैराग्यमुदितं भद्र.!, बाह्येच्छात्याग-, सन्दोहे 'सङ्गतं / सद्वत्तबृंहितं विज्ञः, शान्तत्वं ज्ञानसङ्गतम् // 16 // औपचारिकमद्वैतं, चेन तत्सत्यमन्तरा।। // 49 // अर्थ तथा च नो भग्नो, विवादोऽद्वैतगोचरः // 17 // स्थूलाः सूक्ष्मा द्विधा धर्था-चेतनारहिता सताः। न स्थूलचित्रतासिद्धि-रन्तरा सूक्ष्मभिन्नताम् // 18 // तद्भेदो जीवपरिणामात्स च भिन्नस्ततः पुनः / बीजाङ्कुरनिभा 'क्षत्यै, नानवस्था मता सताम् // 19 // न कर्म निश्चलस्य स्यात्सिद्धेष्वपि तथा मतेः / अन्त्ये गुणे II तथाऽस्थाने, सादृष्टक्षयो हि न // 20 // तथानन्त्येषु सर्वेषु, गुणेषु कर्मवन्धनं / चाश्चल्यात्मत्रकृत् / आह, बन्धं तथैजनावधि // 21 // यदि स्यात्कर्म फलदं, नियतं न तदा भवेत् / दीक्षादि सार्थकं भोग्याभोग्यमेतत्ततो द्विधा // 22 // अभोगे सर्वथा दृष्ट, निष्फलं चेन्न तत्तथा। सर्व वेद्यं प्रदेशेन, भाक्त / तद्यद्विपाकतः // 23 // एवं च पूर्ववद्वानां, कर्मणामुदये सति / स्यात्क्रोधादेर्बलीयस्त्वं, हिंसादेश्वादरस्ततः // 24 // अत्र चाभ्यर्णसिद्धीनां, क्षेत्रादियोग्यताभृतां / शुश्रुपा गुरुसंयोगे, आईत्याः 'श्रवणं अतेः // 25 // il मीमांसनं यथावञ्चेसदा स्यात्पापभीलुकः / एष एव च सर्वेषां, भद्राणां भाजनं भवेत् // 26 // त्रिसन्ध्यमहतां पूजा, प्रत्यहं सर्वसम्पदा / शासनोद्भासन सम्यक्, फलदश्चेत् पापभीरुता // 27 // गुरुसेवा कृतिनित्यं दानं च सत्कृतिशुभा / शुश्रुषाविनयो भक्तिः, फ०। // 28 // दानं शीलं तपश्चापि, भावना भव्यपा| वनाः / साधर्मिकाणां वात्सल्यं, फ० // 29 / / सानां स्थावराणां च, हिंसात्यागस्त्रिभिस्त्रिधा। अमा- ISI 1149 // / रिपटहोद्घोषः,०॥३०॥ खल्लोषाऽसत्कारहीं-न्तरोदितिवर्जनम् / परपीडाकूद्वचस्त्यागः, // 31 // स्वामि-10 AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak'Trus