________________ आगमो प्राग् / भरतेन. तताश्चक्रि-णायेनर्षभसेविना // 17 // न चर्ते नियमं स्वान्य-दाराणां व्यवहारिता / पूर्णा भवेन्नुः तत्सोज, निश्चितो नैव किं भवेत् // 18 // किं चादित उपादत्तं, येन सम्यक्त्वमार्हतं / विवाहे I विबाहद्धारककृति किं स विशं. नमस्कर्याद्विचक्षणः // 19 // तदाश्रवालयोदिष्टिविधेरन्यस्य सत्कृतौ। विवाहेपि ततो विचार योग्यो-ऽहनामाक्तो विधिः श्रिये // 20 // सम्यक्त्ववांश्च भगवा-निन्द्राद्या अपि.ते तथा। किमद्वाहविज्ञ सन्दोहे कुर्युर्यः स्यान्मिथ्वात्वपोषकः // 21 // जम्बाद्याश्च महात्मानः, ससम्यक्त्वा विवाहिताः / कथं चक्रुर्गणेशे ते, // 46 // नतिं सम्यक्त्वनाशिनीम् // 22 // हेमचन्द्रप्रभुश्वाह, सर्वज्ञां कुलदेवताम् / इति तन्न जिनाधीश-मृतेज्यस्य | विशेषणम् // 23 // आर्हतोऽतो विधिः श्राद्धैः, स्वीकार्यः सत्फलावहः / विवाहो गृहिणां मुख्यं, कार्यमेवं | भवेच्छुचि // 24 // बिवाहो नियमाय स्यात्, स्त्रियाः पुंसश्च सत्कृतः। दृढः स च कुलशील-युताना| मेव नान्यथा // 25 // गतापायो भवेत् कामो, लाभश्च सन्ततेः शुभः / गृहरक्षा च लज्जादे-रेवं पीडाऽन्यथा H परा // 26 // नाकार्य कुलजः कुर्याच्छीलवान्नाभिसन्धयेत् / वैकल्ये विकलं सौख्यं, तवयं सुखसङ्गमः / | // 27 // दुष्कुला विधवा कुर्या-द्धित्वा पुत्रादिकं समं / विषयावेशविवशा, सङ्क्रान्तिमपरे गृहम् // 28 // | अशीला तु सदा सङ्गो-ज्झिता शीलविलोपनं / कृत्वा क्षयं नयेत् सर्व, कुलमृद्ध्यादिसंयुतम् // 29 // 1 नियतं युगलं नैव, जायेत स्वाधीना न च / कन्येति मातापितृभ्यां, न कार्यमस्या विवाहनम् // 30 // न वा पक्षद्वयसंयोग-जन्यो योगो भवेद्यदि / न भिन्नगोत्रता मान्या, बलवन्नेकगोत्रजः // 31 // आबाल्याद्विषयावेगो, त H विषमश्च प्रवर्तते / राजयक्ष्मादयो रोगा, एवं स्युः सकले कुले // 32 // मात्रादिजनिता रोगा, अपि स्युरेक- Ruru | गोत्रजे / विवाहे तच्छुचि प्रोक्तं, विवाहो परमोच्चगैः // 33 // न कुटुम्बकलिश्चैवं, न च द्रोहः स्वके कुले | ID एवं च योग्यतेप्सुः स्या-ज्जनः सर्वः समाहितः // 34 // भिन्नभाग्यभराणां च, योगः स्यादेवमेव हि . IDPP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust