________________ सूतक A कुर्वनशुद्धोऽबोधिमाप्नुयात् / तच्छौचस्य श्रुते प्रोक्तो-अनुवादः सूरिपुङ्गवैः // 3 // अत एव दिविषदः, आगमो- स्वचैत्यप्रतिमार्चने / निर्मला अपि मज्जन्ति, स्ववापीजलसञ्चयैः // 4 // जायते द्रव्यसंशुद्ध- वशुद्धिरनुत्तमा / द्धारककृति- ततः स्नात्वार्चयेद्देवा-नितिशास्त्रविदो विदुः // 5 // जिनागमेहतामाप्ती, वन्दनाय निरीयुषां / श्राद्धादीनां / निर्णयपञ्चसन्दोहे जगौ स्नाना-लङ्कारादिगणोणमः // 6 // स्वाध्यायादौ जगादापि, क्षालनं ह्यशुचेर्मुनेः / किमु श्राद्धादिवर्गस्य, 1 विंशतिका भवेदशुचिता हिता ?: // 7 // स्वकायजाऽशुचिं क्षिप्त्वा, यथा धर्मविधिक्रिया। तथा परपदार्थोत्यं, त्यजन्तु રેઢા गुणकाशिणः // 8 // तत्र स्वाध्यायकरणे.जह्यात् हस्तान्, मुनिः शतं / जन्यालयं, गृहस्थोपि, देवार्चायां विधिः पुनः // 9 // अपत्यं प्रसवित्री स्त्री, दिनानेकादशैव तु / अशुचिर्वादशे घने, शुचिरित्यागमोदितिः // 10 // | कल्पे जिनेश्वराख्याने, तच्चेत्तद् व्यवहारतः / अन्यथा नैव तद्र्भ-रुधिराद्यशुचीष्यते // 11 // पुद्गलानामशुचीनां, | | योऽपहारो निवेदितः। सोपि च व्यवहारेण,लेखावस्थामपेक्ष्य वा।।१२॥ कुलस्थितिं न च सार्व-मपेक्ष्य वर्णयेद्गणे।। शौचमाख्यायि सिद्धान्ते, मातापित्रोयोरपि // 13 // द्वादशाहनि निजक-मुखानां भोजनादिकं / कारित | स्थापितं नाम, महोत्सवपुरस्सरम् // 14 // तत्सर्वं शौचमाश्रित्य, पूजामुख्यमपि विधि / व्यधातां तौ न सच्छ्राद्धौ, पूजयेतां कुदेवताम् // 15 // किञ्चाशुचिः कुदेवानां, पृजनेऽनर्थमश्नुते / स्पष्टं स्पष्टक्रुधस्तेषु, | नामो मृष्यन्ति यत्क्षणम् // 16 // व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रेपि, महाबलकुमारके / राजप्रश्नीयसिद्धान्तयौपपातिकवाङ्मये // 17 // दृढपतिज्ञजनने, तदेवाननमीरितं / न तत्र तीर्थकृदाख्या, तत्तोष्टव्यं तदीक्ष्य / भोः। // 18 // किंच ये लौकिकाः शौच-वादग्रस्तमनीषिकाः। तेऽप्याचख्युर्जननजा, दशाहाशुचितां // 38 // ... स्मृतौ // 19 // न चास्ति चिररात्राय, वर्जनं जिनपूजने / आप्तोदितागमे पूर्वा-ख्यातानि वचनानि च / // 20 // तन्नाख्येयं श्रुतोत्तीर्ण, मुनिभिर्मोक्षकाद्धिभिः। आगमानुसूतिर्मोक्ष-पुरमापणवर्तनी // 21 // ये Jun Gun Aaradhak Trust IP.P.AC. GunratnasuriM.S. SocialKI