________________ POST __ आगमो- तन्नाधिकं धर्मनाम्नो-पाज्यं धनमिहोत्तमैः। तात्पर्यमविचार्यैवं, कश्चिदाहात्र वस्तुनि // 4 // विरतान् / सुनका द्वारककृति सर्वपापेभ्य, आश्रित्येदं वचो वरं / प्रक्षालनाद्वरोऽस्पर्श, इति ते यच्छिवोद्यताः // 5 // नार्थ वाञ्छन्ति ते . सूत्र स्वेभ्यः, केवला तत्स्पृहा पुनः / धर्मायेति निषेध्यास्ते, धर्मायार्थार्जनं प्रति // 6 // पर यः स्याद् गृही || निर्णयपञ्चसन्दोहे श्राद्धः, पूजाविभवसन्मतिः / ग्रासाच्छादनसन्तुष्टः, स किं धर्माय नार्जयेत् 1 // 7 // साधर्मिकस्य भुक्त्यै कि // 37 // किं, पूणीयाख्यः पुरा सुधीः / प्रत्यहं न व्यधाद्यत्नः, न किं स संमतो बुधैः // 8 // आरामायेषु ISI किं श्राद्धा, न पुष्पेभ्यः प्रयान्त्यलं ? / विरताः पुष्पभोगेभ्यश्चेदोम् किं रस्यते मुधा // 9 // श्रयते जिनपूजायै, दुर्गता पुष्पहेतवे / अगाद्वनं सूरीजातस्तदैवेयं ततो वृषात् // 10 // किं न धर्मी पुरा तन्वन् , व्यवहारं विचिन्तयेत् / लब्ध्वाऽत्रार्थ मुदा सप्त-क्षेच्याः पोषं तनोम्यहम् // 11 // प्राकालेऽर्थस्य सम्पत्तेः, IN | क्षेत्रपोषविचारणं / किं स्यादनर्थकचेन्नो, किमेवं रव्यते वृथा ? // 12 // भवनं मूर्तिमर्चाद्या, जिनानां सुधियो न किं / सृजन्ति धर्मवृद्धयर्थ, स्वयं तद्भोगवर्जिताः // 13 // अन्यत्रारम्भवत इत्येतावच्छूते मतं / सामान्येन | ततो नैव, धर्मायाज्यं धनं न हि // 14 // सामान्येन हि धर्मार्थ-मधिकारी वधे मतः। न स्याद्विमलHI बुद्धियों, भीतः स्थमाङ्गिहिंसनात् // 15 // अत एवोपवासादौ, वैयावृत्त्यं मुनेर्मतं / साम्भोगिकेभ्य KI आहृत्य, दाने भक्तादिवस्तुषु // 16 // देशनाऽतो बुधैः कार्या, तात्पर्य श्रुतसंहतेः / अवगम्याविरोधेन, I D| स्यादानन्दपदं यतः // 17 // इति धनार्जनषोडशिका // __सूतकनिर्णयपञ्चविंशतिका.(२०) स्तुत्वा नरामराधीश-स्तुतपादयुगं जिनं / सुतके निर्णयं वक्ष्ये, जन्मनः सूत्रसङ्गतम् // 1 // शुचिर्देवार्चनं / // 37 // कुर्याच्छुचिः स्वाध्यायसंश्रयं / संयमी सर्वदा शुद्धः, स्नानादेरॅहमेंधिनः // 2 // देवानां वन्दनं II Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus GR