________________ आगमो-] व्रतं यूनो धनेप्सया // 42 // विझो परागुणोल्लेखी, धर्मी चान्यापहेलनः // अन्यावज्ञापसे ज्ञानी, पाचको II द्धारककृति ISI मुहुरर्पितेः // 43 // केवलां कीर्तिमाश्रित्य, धर्मकर्ता मुदोज्झिता व्रती सौख्यरसाविष्टो, मार्गोत्तीर्णस्य / धनाजेन देशकः // 44 // वस्त्रपाबादिसशाही, स्थास्नुर्बद्धे पुरे सदा। कार्येषुः गृहिणां सक्तः, स्वाध्यायध्यानवर्जितः षोडशिका सन्दोहे // 45 // वस्त्रपात्रशरीरोपकृतिशोभाकरोः हसे / प्रसक्तः सह रामाभिर्वार्तालापकरोज्वहम् // 46 // भववृद्धिकरं . // 36 // ख्याता, स्वानुमानां विशां वृषे / धनधान्यगृहग्रामा-रामकूपादिधारणम् // 47 // ममीकारो गृहस्थेषुः / / शिष्येषु वसतिष्वपि / अबुद्धिरात्मबोधस्य, विकथारतिता पुनः // 48 // अन्त्ये शय्यासनाहार-प्रभृतेर- 10 विसर्जनम् / उचितो. न व्ययो धर्मे, यस्तदागारिणां धने // 49 // वृद्धेनोक्तं व्ययेदन्त्ये, न पुत्रः किन्तु | सङ्ग्रहे / स्थापयेद् वृद्धविभवे, गर्धिष्णुश्चापि जायते // 50 // अप्रिनं भाषणं निन्दा, मर्मोक्तिश्चाटु-ति कारिता / स्वावस्थास्वनपेक्षित्वं, नर्वेषु प्रवरं समम् // 51 // हाय हायं जाति जनतान्यत्कृतं स्थानमादौ, / दायं दायं करणनिकरोन्मन्थने चित्तचर्याम् / दर्श दर्श सुजनपदवीं सद्गुणालिप्रक्लप्सा, वारं वारं त्रिदशसु-8 खितां मोक्षसौख्यं भुनक्ति // 22 // ध्यायं ध्यायं सुमतिमुनिपोद्भावितं सूत्रसन्धां, पायं पायं समयबचसोद्भावितं तत्वमर्थम् / श्रावं श्रावं गुरुनिगदितं विक्रियाभूमिसीरं, ख्यातं पुर्यो वसुरसनबभूहायने | वक्ति बोध्यै // 53 // इति गपकृत्यम् // धनार्जनषोडशिका (19) ... ननु धर्माय नेष्टव्यां, धनमित्युच्यते बुधैः। प्रक्षालनाद्वरोऽस्पर्शः, पङ्कस्येति निदर्शनात् // 1 // उपयोगोऽस्य नान्योऽस्ति, लष्टो धर्मे व्ययात् परः / इत्युक्तेर्न तदर्थाय, प्रवृत्तिः शास्त्रकृन्मता // 2 // N Til उपाय॑ते स्वयं लोभात् , पुरग्रामधनादिकं / प्रभूत स्वल्पमेवात्र, धर्मे व्ययति सन्मतिः // 3 // Jun Gun Aaradhak True P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. INI