________________ रा 1 यथा स्वस्याऽस्तुतौ द्विष्या-त्तथा किंमपरो नहि ? / आत्मवत्सर्वभूतेक्षी, किमेतावन्न पश्यति ? // 48 // . आगमो- स्वस्मै यद्रोचते धीमाँस्तदन्यस्मै समर्पयेत् / न्याय्यं मार्गमिदं वीक्ष्य, कुर्यादाऽऽयतिलाभदम् // 49 // गुणग्रहणद्वारककृति- कुर्वन्धर्म फलं नाप, प्रापाकुर्वन्मतिं शुभां। भ्रात्रोयोऋते निन्दा, तत्रान्यत्किमु कारणम् ? // 50 // शतकम् दुस्तपस्तप्यमाना ना-वापुस्तल्लाभमुज्ज्वलं / यदाप कूरघटभुग्धेतुनिन्दामृतेऽत्र कः? // 51 // सर्वार्थसिद्धिसन्दोहे | तश्युत्वा, यत्तु नारीत्वमापतुः / अत्र पीठमहापीठौ, हेतुनिन्दामृतेऽत्र कः ? // 52 // मुनिन निन्योऽयमिति | // 30 // प्रचख्यौ, मुनीन समाधिस्थितचित्तवृतीन् / वीरो विराद्धक्षितिपानकायः, पास्यत्ययं तानघनाशनो यत् // 53 // (उपजातिः) उक्त्वा पुरा पौषधमत्र देशा-त्ततश्चकाराखिलतोपि तद्यत् / तदापि निन्दा विभुना न युक्तोदिता तदा ब्रूत कथं शुचीयम् ? // 54 // न दर्शनं वोधयुतं चरित्रं, न चापि शीलं निखिलं न दानं / ति तपो विचित्रं शुभभावनायुक्, फलेन चेन्नैव पराभवोज्झितिः // 55 // (उपेन्द्रवज्रा) लोकास्वायैर्विविध- IAI रसभृत्पत्रपुष्पैः समृद्धो, नम्रोऽत्यन्तं वचनविपयातीतसौख्यैः फलैर्यः / स्कन्धावारैनियतमनिशं सेवितच्छायया चेद् वह्निर्मूले विटपिनमिमं कः श्रियेतार्द्रचित्तः ? // 56 // (मन्दाक्रान्ता) किं भो ! दृष्टा तापशान्तिः / कृशानोवान्तध्वंसः सैहिकेयादनन्ते / धर्मप्लोषो सविम्बात् कदाचिद् , देवात्स्यानो धर्मलेशोऽप्यवर्णात // 57 // लुब्धः पले वेत्ति दयां न विद्या-द्वोपादिशेन्नैव प्रशंसयेद्वा / अवर्णवादव्यसनः परेषां, गुणानने- / काननघाञ्जगत्याम् // 58 // (उपजातिः) दिवा यथा नेक्षते कौशिकः प्रभाः, सहस्रभानोस्तिमिराक्तलोचनः। तथा परेषामगुणान्विलोकयन् , गुणान्गुणाढ्यस्य गुणेषु मत्सरी // 59 // नेत्रविहीनो न हि निन्द्यतामियाच्छु भाशुभं कर्मवशादपश्यन् / निन्यो बुधैर्यो गुणमाह दोष, गुणेक्षणेऽसौ सततं विनेत्रः // 60 // मक्षिका चन्दनं / / // 30 // त्यक्त्वा, विष्ठायामधिरोहति / गुणाँस्त्यवत्वा तथादोषे ऽधिरोहेनिन्दकः सदा // 61 // विहाय चालिनीP.P. Ac Gunratnasuri.M.S. Jun Gun Aaradhak Trust(! RER TING