________________ आगमो. शतकम् झर ककृति __ सन्दोहे Ki क्षोद-मादत्ते कर्करादिकम् / खलस्तथा जने दोषान, गृह्णीयात्सद्गुणांस्त्यजेत् // 62 // शुद्ध रक्ते जलौका IN मय-दशुद्धं रुधि पिबेत् / शुद्धे गुणे खलो लाति, दोषं स्वास्यविभूषणम् // 63 // और्वो विभावसुनैति, गुणग्रहण यथा शान्तिं सरित्पतेः। सलिलेन तथा दोषान् , गृह्णन् कर्णेजपः सदा // 64 // यथा तैमिरिको AI वेत्ति, दीपेऽध्यारोपमण्डलम् / अविद्यमानमेव स्व-चक्षुर्दोषेण दूषितः // 65 // तथाऽन्यावर्णकथने, A | नदीष्णः सद्गुणावलौ। देवे गुरौ तथा धर्मेऽवर्णमेव समीक्षते // 66 // शुद्धे व्योम्नि यथे- II | क्षन्ते, नरा. रेखाविमिश्रतां / तैमिरिकास्तथा तुच्छाः, शुद्धेऽप्यध्वनि दुष्टताम् // 67 // कपिर्यथा | न वेत्ति स्वं, बद्धं स्वेनेह लोलुपः। निन्दको न तथा हानि, कुर्वन् स्वस्मिन्नपीक्षते // 68 // न देवान्न गुरूनापि, सुहृदो न चं बान्धवान् / उपाध्यायान् मुनीन् पितॄन् , मन्वते नैव निन्दकाः // 69 // सर्व एव गुणाः स्वस्मिन् , दोषलेशाकलङ्किताः। परेषु न गुणाः केचिद्गाध्माताः खला इति / | // 70 // गुणागुणौ समीकुर्वन, प्रोच्यते बाह्यदृक्छूते / स्वदोषानन्यसुगुणान् हुते तस्य कथा हि का ? | | // 71 // हेयानाऽऽहाऽत्र यो ग्राह्यान् ,ग्राह्यान्वया॑जडो वदेत् / स मिथ्यादृष्टिमूर्धन्य-स्तथा ज्ञश्चेत्तदा किमु ? // // 72 // कलिकालजिनो मिथ्या-सम्यग्दृष्टयोः समानता / ख्याता दोषाय चेदाहा-सत्यवादे तु का || कथा ? // 73 // नित्यं गृणन्ति शुचयः परबोधनाय, मध्या धनादिविधये तनुसौख्यसिद्धथै / हास्यादिकर्तुमधमा गतधर्मसाराः, के वादिनोऽनिशमनर्थमुचां कुवाचाम् 1 // 7 // (वसन्ततिलका ) स्पर्शे रसे सुरभिगन्धयुते सुरूपे, वेण्वादिनादनिचये च सुखं पशूनां / देवे गुरौ वृषविधौ नमनात्सुरनोवियो न | तान्य इह दोषकथासु लीनाः // 7 // न पापानां कथां कुर्यान् , न चेत्पापफले स्पृहा / अपापानां कथा ! कुर्यान चेत्पापफले स्पृहा // 76 // सर्वसिद्धमिदं भद्रा, घुष्टमेत्य सकृत्स्मृति / प्रवृत्तिरपि संस्मृत्य, तन्न // 31 // P.P.AC.'Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust