________________ शतकम् // 27 // आगमो. Ki हानि। समरुचिकृतसौख्योदन्वदन्तर्निमग्नो-ऽभवदनणुसुखानामालयेऽसौ जिनेशः // 51 // नवसारे ततसारे द्वारककृति-H | रचितं स्मारितसुरर्द्धिसञ्चारे / पार्श्वक्रमपूततारे सिद्धरसाङ्केन्दुवर्षारे (1968) // 52 // इति लोकाचारः // | गुणग्रहणसन्दोहे गुणग्रहणशतकम् (17) नत्वा नरामराधीशा-वर्णवादविलोपकम् / अचिन्त्यवर्णदातारं, जिनं किञ्चित् अत्रे तयम् // 1 // वर्णश्लाघा | विधेयोऽसौ, गुणितां गुणधारिणा / गुणाप्तये यतो मुक्ताः, स्तूयन्ते सर्वसाधुभिः // 2 // गुणानुरागतो / जीवा, गुणिनः पाप्पसङ्ख्यात् / स शुभाध्यवसायात्स्यात् , तमृते च भवेदसौ // 3 // अवर्णस्तत्सतीपः स्याद्वस्तु- 1 तो न शून्यता। अदुःखं कीत्यते वस्तु-भूतं यदन्न तुच्छकम् // 4 // निन्दा परिभवः कुत्सा, जुगुप्सेD त्यादिपर्यकः / अवर्णवादस्त्याज्यो य-माश्रितो अद्दात्मभिः // 5 // अशुचेर्भक्षणं विज्ञा, जुगुप्सन्ते कथं तु IN ते / परदोषाशुचौ कुर्याद्वदनं शुचिसम्भावे / / 6 / / अपवित्रो न दोषेभ्यो, ऽन्योऽत्रास्ति भुवनत्रये / रंजो ISI गुरुपदास्पृष्टं, 'पूतं दोषो न कश्चन // 7 // पृथ्वयादिभिर्भवेच्छुद्धं, विष्ठाद्यपि च विश्वसात् / नत्वंKI शेनापि. दोषाणां, शोधकं जगतीतले. // 8 // कविगुण्मलायाः स्युः, पावनाः सनराश्रयात् / जीवानामौषधीभूता, न तु दोषाः कदाचन // 1 // ख्यातं ततो बुधैः सारं, श्रुते भव्यविबुद्धये / / Hशोरपि गुणा ब्राह्मा, कन्या दोषा गुरोरपि // 10 // अबुधा अत्र वाक्याथै-मन्यथा माहुरादात् / / | कार्या रिपोर्गुणाशंसा, गुरोदोषावहेलना // 11 // त्रिमशन्ति न तेत्रोक्त्या, रहस्यं तु बुधवाः / निन्दा-- IN यामाता सूरेविस्मृत्य गुणकारिताम् // 12 // शंसन्ति नु कि तेऽज्ञाः, स्वस्नुषादेः कदाचन / पुरः पण्या 2 . - MP.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus