________________ बागमो द्धारककृतिसन्दोहे दोऽपूत-मित्यपि व्यवहारतः / ब्रादेर्मूत्रस्य लेपेऽच्छीक्रियतेऽर्थो न गवादिनः // 33 // चैत्ये नोपानहाय / यचर्मजातं प्रवेश्यते / मृदंगादेः प्रवेशेज्यो, हेतुर्न व्यवहारतः // 34 // जन्तुकायोद्भवं रक्त-मपवित्रं तथा लोकाचारः न तु / कस्तूर्यादि ततोलान्यो, हेतुर्न व्यवहारतः // 36 // यच्चादिमागमे प्रोक्ता, लोकसज्ञातिरस्क्रिया। चाचकैरपि स्पष्टोक्त्या, स्पष्टिता स्वोदितौ स्फुटम् // 36 // सा सर्वा तत्त्वश्रद्धान-विपरीता यकेक्ष्यते / सञ्जा श्राद्धादिका ज्ञेया, न पुनर्व्यवहारिणी // 37 // यद्वा धर्मक्रियां कृत्वा. रिरञ्जिषति यो जनं / आत्मार्थबाधतात्तस्य, दर्शिता तु तिरस्क्रिया // 38 // यो वा वंशक्रमायातां, नैव हिंसां जिहासति / वृणुते || सत्यमस्तेयं, न न ब्रह्माहतो भवेत् // 39 // शुद्धं देवं गुरुं धर्म, विदन्नपि न संश्रयेत् / लोकापवादमीत्यास्तं, IKI प्रतीत्यैतभिषेधनम् // 40 // गुरोर्मूले जिघृक्षुर्यो, व्रतानि नाग्न्यभीरुकः। लोकापवादतो लाति, न तं विधिरयं श्रितः 1415 // याचिष्ये वा कथं त्यक्त्वा, सर्वारम्भपरिग्रहम् / इति लोकापवादेन, भीतानां ! विधिरेष तु // 42 // श्रद्धधानः शुभं धर्म, लज्जया नैव मुञ्चति / मिथ्यात्वसेवनं वंश-क्रमाप्तमितिप्रज्ञया // 43 // तं तादृशं परं वाप्याश्रित्य शास्त्रे तिरस्क्रिया। वर्णिता धर्मबाधिन्या, लोकपकतेन सर्वथा // 44 // अत एवोदितं धर्म-विरुद्धस्य विवर्जनं / सह लोकविरुद्धेन, वाचकैः शमपद्धतौ // 45 // प्रणिधाने प्रवचने, ख्यातं लोकविरोधि यत् / मद्यातादि तच्यागः, प्रार्थितो भवनावधिः // 46 // देशाचारसमाचारः, प्रशस्तोजाहतो यतः / लोकसञ्ज्ञा श्रुते ख्याता, न सा श्रेया न तद्ग्रहः // 47 // विरुद्धमपि लोकेषु, तत्याज्यं यन्न भवप्रदं / तदैकयमनयोरत्र, कथञ्चिदाहृतं बुधैः // 48 // यद्वा चर्या विरुद्धा स्यादेशेनेति तनुं श्रितः / विधिस्तत्राङ्गिनं त्वत्र नैश्येनापि प्रयोजनम् // 49 // प्रसिद्धामाचरँश्चयाँ, लोके तत्त्वत्रिलोककः / अझै धर्माय द्राग्लाता, सुखं नृखःशिवालये // 50 // कमठवितवदुःखश्रेणिपाथोरयेण, न गत्ययविनाशि ध्यानमंशेन Jun Gun Aaradhak Trust KI DI // 26 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S.