________________ बागमो. द्धारककृतिसन्दोहे રષ્ટા च / न चैतिह्याऽऽगतो लोप्यः, कैश्चनापि क्रियाविधिः // 18 // इत्येवं श्रुतराशिसङ्गतमिदं मार्गाश्रितः सेवितं, शुद्धं सद्व्यवहारपञ्चकमुपावर्ध्यात्मशुद्धिप्रदं / ज्ञात्वा भो ! श्रमणाः सदोदितवृषाः सच्छ्रावका भावतः, लोकाचारः स्वाचारं दयतां यथायथमघोच्छित्यै महानन्दनाः // 19 // इति व्यवहारपञ्चकम् // . . लोकाचारः (16) . . देशाचारं समाचार्य, श्रमणाचारसंयुतं / दिष्ट्वाऽऽपनिर्वृतिं पायात्, स युगादिजिनोत्तमः // 1 // | द्विविधाश्चेतनापन्तो-ऽध्यक्षा नियमवर्जिताः। आधाः, परे व्रतोद्युक्ता द्वयेषां देश आश्रयः // 2 // देशेन A न विरुध्याद् यद्धर्मोपकरणादयः / आदेया लोकतो ह्या,आहारथाखिलैरपि // 3 // लोकमाश्रित्य तत्कार्य-मखिलं || तत्त्ववेदिभिः / लोकाश्रितसमाचारे, यत्समौ बालपण्डितौ // 4 // व्याख्यातं वाचकैलॊकविरुद्धादति- . वर्जनं / धर्मचार्याश्रयतया, लोकस्यास्य सदातिः // 5 // जिनेन्द्रैरपि साधूना-माख्यातं पिण्डवर्जनम् / जुगुप्सनीयगोत्रेषु, तत्रान्यन्नहि कारणम् // 6 // देशसिद्धसमाचारो, जन्तुर्धर्मादृतो भवेत् / तत्प्रशंसादिना धर्मे, जन्तूनां बोधको बहु // 7 // अन्यथा दुश्चरं कुर्वन्नाचारं लोकनिन्दितः। शासनम्लानितो याति, बोधिदुर्लभतां जनः // 8 // धर्मलिङ्गमतो भद्रं, हरिभद्रेण सरिणा / जनप्रियत्वमाख्यातं, तद्वांस्तद्धर्मबोधका // 9 // आचार्य. कालिकः पर्व, चतुर्थी वात्सरं दधौ / राज्ञो लोकानुवृत्त्यर्थ, नोपेक्ष्योऽयं ततो बुधैः // 10 // आददानो जिनो दीक्षां,युगादौ युगसत्तमः / शक्राभ्यर्थनयाऽरक्षन्मुष्टिमेकां कचस्य न 1 // 11 // अन्यस्मिन्स्थण्डिले काम्यन्नन्यस्मात्स्थण्डिलात्पदोः। विभाषां मार्जनं वीक्ष्य, किरपेक्ष्यो बुधैरयम् 1 // 12 // उज्ज्वलं बिभृयाद्वस्त्रं, सुरिः शासनवर्धकः / आख्यातधर्मवापि, तत्रान्यत्कारणं किमु ? // 13 // अधमर्णो न गृह्णीयाद्यान् साध्वालयमार्हतः / गत्वाऽऽददीत तत्रैव, समायमिति यत्स्मृतम् // 14 // तत्र लोकापवादस्य, | // 24 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak True