________________ / आगमो द्धारककृतिसन्दोहे | चैताढथेभ्यः परं नयः // 9 // न चत्ते वासुदेवाना, त्रिखण्डाधिपताया। आज्ञाप्रतिहत्ता तन्त्र, तत्र सर्वत्र सर्वदा // 10 // तदेवमार्यविषयां, निशम्योक्ति मनीषिणः / कुरुध्वमुद्यमं धर्मे, मत्वार्याप्ति मुदुर्लभाम् // 11 // आयोनार्यः केचिदाहुस्मेि आर्या, भरते वत्सदेशगां / कौशाम्बी दक्षिणां कृत्वा, ज्ञेया न परतः पुनः // 12 // यतो त विचार: बृहत्कल्पसूत्रे, कौशाम्बी दक्षिणादिशि / मर्यदायां तथा चेमे, सौराष्ट्राचा अनार्यकाः॥१शा तन्मृषा यदिशस्तत्र, विषयैर्यन्त्रिता यदि / किमत्र नगरीष्टेषां,विषयस्तदभिधो नहि // 14 // दक्षिणस्यां हरिः कालं गतो यत्र बने अतः। कोशाम्बे तदुपान्त्यस्थो, देशः कौशाम्ब एव सः // 15 // किश्च सम्पतिना राज्ञा, साधून घेण्याऽयंकाः कृताः। आन्ध्रद्रविडहुडुक्क-महाराष्ट्रा न तु परे // 16 // किञ्च तत्र मही साधो-स्तार्येति बचनं स्फुटं / नदीपञ्चक- I सङ्ख्याने, कलिङ्ग मध्यगा त्वियम् // 17 // किंचैतावद् मतं क्षेत्रमार्य तत्र ततोऽनघं। कौशाम्बदेश-AI ग्रहणाद् , व्याख्यानं साम्प्रतं सताम् // 18 // सौराष्टेषु जिनो नेमि-र्व्यहार्षीत् कृतशासनः। श्रीवीरो IA मालवे चण्ड-प्रद्योतं दीक्षितुं ययौ // 19 // स्पष्टमेतज्ज्ञानसूत्रे, श्रीवीरचरितेऽपि च / न चोत्पनविदामार्यान्विहाय विहतिर्भवेत् // 20 // विहाय नेमिनं शेषा, जिनाः सिद्धाचलं ययुः। विमृश्यं वाक्यमेतद्धि, मार्गानुसरणोद्यतैः // 21 // न चोयं वीरनाथस्य, वर्षारात्रोऽभवन्नहि / एकोऽप्यत्रेति, तन्मिथ्या, यतः / / सूत्रे खलु स्मृतम् // 22 // गमनं सिन्धुसौवीरेष्वभूद्वीरस्य दीक्षितुम् / उदायनं न तत्राभूद्वर्षारात्रो विभोः। पुनः // 23 // हित्वा स्वीयां कल्पनां तत् . सुधीर्मार्ग श्रुतोदितं / श्रयेचेत् शास्त्रसम्यक्त्वं, भवेदात्मनि मोक्षदम् // 24 // इत्येवं जिनशास्त्रवाक्यविदिताऽनार्येतराणां मया, मर्यादा गदिता शुभंयुरखिलज्ञोक्तौ / रतानात्मनः / श्रुत्वैतां भविका भवन्तु सततं धर्माथिनो नीति, येन स्याजननं सदा सुकृतदं नित्यं . महानन्ददम् // 25 // इति आर्यानार्यविचारः॥ .... कोषा // 22 // TO DIP.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust