________________ वारककृति आगमो- नोक्तं, ध्यानं कर्मक्षयावहं ? / शुक्लं ध्यानं समारूढो, न सृजेत् साम्परायिकम् // 18 // न च तस्मिन् आर्शनार्थ | सुरादीना-मायुर्गत्यादि बध्यते / तदारुढश्च धर्मात्मा, क्षपेद्देवादिका गतीः // 19 // समुद्घाते च शैलेश्या, 'विचारः प्राग्वद्धं क्षीयते क्षणात् / पुण्यं पापं च ते धर्मस्तद्धर्मो द्वयनाशनः // 20 // किं चास्ति बन्धनं पुण्यासन्दोहे ID श्रितं. संसारसाधकं / कषायपापभावोत्थं, परस्मिंस्तु क्षणस्थिति // 21 // निर्जराकर्मणां नास्ति, न // 21 // मोक्षो निर्जरां विना / भेदिनीं नीतिमाधाया-धभेदाय वृषादरः // 22 // यथा न केवले पाप-प्रचये जन्म | संश्रयः / तथा न केवले पुण्य-प्रचयेऽपीष्यते बुधैः // 23 // ततः पापक्षयायोक्त उपायः पर्यवस्यति / पुण्यक्षयाय तद्धर्मः, पुण्यापुण्यक्षयङ्करः // 24 // विचार्य ज्ञः समं ह्येतत् , संवरे निर्जरायुते / सदोद्यतो भवन्ने स्यान् महानन्दधामभाक // 25 // इति मोक्षपञ्चविंशतिका / आर्यानायविचारः (14) आर्योत्तमं जिनं नत्वा, विधाऽऽर्यानार्यगोचरं / विचारं दर्शयाम्याप्त-शास्त्रसम्मतमाश्रितः // 1 // आर्याणां विषयाः सार्ध-पञ्चविंशतिसम्मिताः / सर्वविद्वन्मतं ह्येतन्नात्र कापि विचारणा // 2 // परं SI केचिद्वदन्त्येवं, भरतैरवतेषु ते / विदेहेषु समे आर्या, विषया इति यद्वचः // 3 // लोकप्रकाशगं साध . द्वयद्वीपेषु यन्मताः। सार्धद्विशतसङ्ख्याका, आर्यास्ते स्युःशस्वपि // 4 // तन चारु, यतः स्पष्टं, वृत्तौ / | प्रवचनस्य तु / उक्तं यदेते भरते. आर्या उक्ताः परं त्विमे // 5 // विदेहेष्वरवतेषु, आर्यानार्या व्यवस्थया।। | श्रीवीरचरितेऽप्याहु-गुणचन्द्रमुनीश्वराः // 6 // चक्रिणः प्रियमित्रस्य, षटूखण्डावनिसाधने / आर्यानार्यव्य- 2 वस्थां तद्, विदेहेषु द्विधाऽपि तौ // 7 // आदिदेवोदितां नीति, धारयन्तो यथार्यकाः / अत्रैवं स्युर्विदेहेषु, ISI // 29 // किं न भेदो नयोद्भवः ? // 8 // न च सर्वत्र विजये-वस्ति सत्ता तु चक्रिणः / सर्वदेति कथं तत्र, .AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust