________________ शरणवरोधे, तीर्थे त्रयं नेदमुपेक्षितं जिनैः // 11 // जिना जिनानामनुकारमाप्तास्ततः श्रुते गीयत आहेतानाम् / / आगमो चतुष्कम् व्रतादि सर्व नितरां जिनायै-राचीर्णमित्यत्र न कापि चिन्ता // 12 // अनुकरणमाहात्म्य-मेतद्यच्चरमो जिनः।। द्धारककृति देशनां प्रथमां बन्ध्यां, जाननपि चकार यत् // 13 // इति सदनुकरणम् // सन्दोहे शरणचतुष्कम् (12) . // 19 // .: 'नमो विराग ! सर्वज्ञ !, शक्रपूज्य ! यथार्थवाक् ! / भगवॅल्लोकगुरोऽर्हस्तुभ्यं एवमुक्तवान् // 1 // जीवोनादिर्भवोऽप्यस्य, कर्मसंयोगजस्त्वयंः। दुःखरूपफलोद्वन्धश्छेदोऽस्य शुद्धधर्मतः // 2 // स पापक्लि यात्सोपि, भव्यत्वादिविपाकतः। चतुःशरणगमनं, गर्हणं दुष्कृतावलेः // 3 // स्तुतिः . सुकृतसन्तत्या अस्य हेतुत्रयः त्विदम् / तत्कार्यमेतद्भवितु-कामेनैवाग्र्यमन्वहम् // 4 // मुहुः क्लेशेऽन्यथा सन्ध्या-त्रितये | जीवनावधि / भेगवन्तोऽग्रपुण्याढ्या, गुरवो ये जगत्त्रये // 5 // क्षीणरागद्वेषमोहा, अचिन्त्यसुररत्नभाः। D भवोदधिप्रवहणाः, शरण्याः शरणं मम // 6 // चतुर्भिः कलापकं // प्रक्षीणजन्ममरणाः, कर्मापरि। वर्जिताः। नष्टव्यथाः समस्तार्थ-ज्ञानदर्शनसंयुताः // 7 // सिद्धिस्थिता निरुपम-सुखयुक्ताः कृतार्थकाः।। | सर्वथा- शरणं सिद्धा, भवन्त्वेते तथा सदा // 8 // युग्मम् // शान्तगम्भीरमनसः, सावद्ययोगवर्जका | : पञ्चधाऽऽचारनिपुणाः, परोपकृतितत्पराः // 9 // पद्माद्याहरणास्थाना ध्यानाध्ययनसङ्गताः। शुद्धाशयाः साधवो मे, F.-INI शरणं सन्तु सर्वदा // 10 // युग्मम् // सुरासुरनरेशाच्र्यो, मोहध्वान्तनभोमणिः। रागद्वेषविषे मन्त्री, हेतुः IN सर्वशुभागतेः // 11 // कर्मकक्षानलः सिद्धेः, साधकः केवलिस्मृतः। धर्मो मे भगवाञ्छरणं, सर्वदा II सर्वथा भवे // 12 // इति शरणचतुष्कम् // ...... Ac.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak Trus