________________ IS दालुमर्हति / साधुराडिति यद्दीक्षा, प्रतिपत्तुरिदं भवेत् // 23 // दीक्षिण्यमाण आप्ताज्ञां, गृह्णीयान्न परं यदि / आगमो-आता अनुमतिं दद्युस्तदोपधिमुपाचरेत् // 24 // तथापि नानुमन्येते, चेन्मातापितरौ तदा / तयोर्व्यवस्थां ISI क्रियास्थानद्वारककृति-निर्वाह-विषयां तनुयात्ततः // 25 // तयोः कलत्रपुत्रादे-र्व्यवस्थामविधाय यः / आदत्ते मुनितां स. स्यात्तत्कृता-K सन्दोहे | नर्थभाजनम् // 26 ॥न कौटुम्बिकनिर्देशापेक्षणेन गृहे. वसेत् / नारण्येऽसहमात्रादे-रायात्मपरिच्युतिः 14 वर्णनम् // 27 // विपिनात्स्वयमुर्तीर्णो, यथा जातु प्रजीवयेत् / तांस्तथा स्वयमुत्तीर्णोऽन्यानुत्तारयति क्षमः // 28 // // 16 // IS ज्ञात्वैतत पञ्चसूत्र्युक्त-मुपदेशपदोदितं / यथायथं यतेतात्राऽन्यथा स्तेयेन लिप्यते // 29 // दृष्टान्ता विविधा | | अत्रानुज्ञानेतरयोः श्रुते। विधिमार्ग विहायाऽऽलम्बनं श्रेयो परस्य न // 30 // आश्रवः सर्वथा हेयः, स विवेकेन / | हीयते / अविवेककृतं हानं, मेकचूर्णायते पुनः // 31 // कुटुम्बं सर्वथा त्याज्यं, पत्तनं मोहभूपतेः / आरम्भा त | अर्थसम्बन्धा-वास्तु तत्सङ्गमोत्थिताः // 32 // पालनीयं विधायाघशतानीति न जैनगीः / किन्तु तन्ममतां I हित्वा, यथार्ह समतां श्रयेत् // 33 // इत्येवं जिनराजशासनगतां सीमानमुद्यद्धितां, भव्यानां पटुमार्ग10 बोधनपरां शिष्यप्रव्रज्याविधौ / आख्यन् मोहमलिम्लुचां निरसने बद्धादरः श्रेयसे, आनन्दोदधिरात्त- 15 जैनसमयोद्गीत्याऽमृताप्तौ रतः // 34 // इति शिष्यनिष्फेटिका // क्रियास्थानवर्णनम् (10) नत्वा नम्रसुराधीशं, वीरं शुद्धार्थदेशकं / त्रयोदशक्रियास्थानान्युच्यन्ते बालबुद्धिना // 1 // | अर्थानौँ हिंसाऽकस्साद्, दृष्टिभ्रषाहराध्यात्मे / मानो मित्रं माया लोभ-श्चर्यापथिक्यपि च // 2 // आत्मस्वज़नाद्यर्थ जीवनधोऽर्थे ततोऽन्यथाऽनर्थे / जिनपूजागुरुसेवा-द्या हिंसा न दण्डभूः // 3 // Jun Gun Aaradhak Trust iDP.AC. Gunratnasuri M.S. KH