________________ आगमो. द्धारककृतिसन्दोहे. // 8 // मुनेः / आवश्यको न, सम्यक्त्वं तमृते न तु सम्भवेत् // 13 // विना सम्यक्त्वमखिलस्त्यागोंऽप्यत्याग एव हि / नहि मूलं परिहृत्य, वृक्षोऽप्युद्भवितुं क्षमः // 14 // दृश्यमानो भवेत्यागो, न किं विघ्नो- IN मोक्षषट् दयोद्भवः 1 / द्विधा ह्यभोगश्चरणा-दन्तरायाच नान्यतः // 15 // विना सम्यक्त्वमाप्येत, चरणं न il त्रिशिक यथातथम् / पारिशेष्यात्ततो मौनं, तस्यान्तरायकर्मजम् // 16 // असमञ्जसमेतद्धि, स्वकल्याणाभिलाषुकः। मुनिः सर्वोऽपि बहुशो, जिनदेवः कृपावृषः // 17 // कालौचित्यात् स्वचरणं, रक्षन् शुद्धमरूपकः / शासनं द्योतयन् साधोः, पदं किं बुध ! नार्हति // 18 // नोदना भाजनोन्नामे, दध्युन्नामस्य नोदने / यथा तथाज तत्वार्थ-श्रद्धानं गम्यते न किम् ? // 19 // बलधृत्याद्यपचितेर्या संयमने प्रमत्तता / सा न हन्ति मुनित्वं यत् , कुशीलबकुशौ मुनी // 20 // यावच्छासनमेतौस्तस्तत्सूत्रानुश्रितं ह्यदः / मौनं मान्यं मुनीन्द्राणां, साम्प्रतानामनाहतम् // 21 // किंच स्मरन् हृदा भोगान् , विरतो द्रव्यतो भवेत् / यदा तदापि साधुत्वं, द्रव्यतोऽमरताप्रदम् // 22 // अन्तरायफलेऽभोगे, दुष्टगत्यादिसम्भवः / न चैतद् द्रव्यभिसणा-मपि स्वर्लोकगामिता // 23 // न चान्यशासनं शास्ति, मनुते सेवतेपि च / येन लब्धो भवेत्तस्य लाभो व्याघ्रान्ध्यनाशनम् // 24 // निदानेन मुकुन्दाना-मधोगामित्वनिश्चये। सत्यप्युत्कृष्टनरता, शिवं च गमिता खलु // 25 // अनेके मुनयोऽजात-सम्यक्त्वाश्चरणे रताः। सदृष्टिं निर्मलां प्रापुस्तक्रियारुचयो यताः // 26 // K इत्थमेष्टव्यमेतद्धि, देशनाया यतः क्रमः। मौनादिमद्यमांसादि-विरत्यन्तो यतो मतः // 27 // द्रव्यतोऽप्या- 1 श्रवत्यागे, दुर्गत्यादि न तत्फलम् / ऊनाक्षाद्या यतो दीर्घ-स्थित्यादेबन्धका नहि // 28 // बुद्ध्वा HI // 6 // भवस्य नैर्गुण्यं, ये शक्त्या चरणे रताः। देवासुरनरैर्वन्यास्ते वन्द्या विश्वपावनाः // 29 // अङ्गारमर्दकोऽभव्यो, निर्वृति नेष्टवांस्ततः / वीरजीवेत्यादिनाऽसौ, तीर्थकृद्वेषदूषितः // 30 // अमुं तद्वाह्यत- अके, सङ्घात् स्पष्टाऽन्यदृष्टिता / सङ्घबाह्यकृतौ हेतु सम्यग्डक्त्रमात्रता // 31 // कासामोहोदयः शाखे, IN