________________ R ' आगमो. मौनषदः // 7 // आहेतः / हिंसाद्यघावलेरत्र, निषेधः सर्वथा खलु // 1 // ध्यानाध्ययनमुख्यानां, विधीनामेष देशकः। द्वारककृति तत्सम्भवाय रक्षाय, चेष्टा सर्वा जिनागमे // 2 // स्याद्वादाङ्किततत्त्वानां, जीवादीनां निरूपणं / सूक्ष्मसन्दोहे युक्तिशतोपेत-मवाध्यं परतीथिकैः // 3) इति सचूलचारित्रधर्माष्टकम् // त्रिंशिका __ मौनषत्रिंशिका (5) - अन्तरायफलं मौनं, कश्चिदित्याह तार्किकः / भोगोपभोगशून्यत्वं, परथा कथमीक्ष्यते ? // 1 // Iत तन्न, यत् शून्यता भोगो-पभोगे नान्तरायतः / भोगोपभोगतृष्णाया, अभावाद् यदुदीरितम् // 2 // अन्तरैप्रतीत्यन्तराय, जीवस्य भोग्यवस्तुनः / प्रत्याख्यानवतां तृष्णा, नास्तीति नान्तरायता // 3 // चारित्रD! मोहशमनात् , प्रत्याख्यानवतां सतां / भोगोपभोगयोः प्राप्ता-चपि तद्भोगशून्यता // 4 // भोगादीच्छा वतां भोगादेरमाप्तौ तदुदयः। प्राप्तौ वा रोगमृत्यादि-शङ्कया तद्विवर्जनम् // 5 // पापभीरुतया शास्त्र- / वाक्यानुसरणात्तथा / निजस्वभावतो वा य-तत्त्यागो नान्तरायता // 6 // यथा सुबन्ध्वमात्यस्य, चाणक्यस्य स्पृहावतः। भोगेप्सायामपि त्यागो, यावजन्म जिजीविषोः // 7 // तथा चेन् मौनमाप्येत, तदा स्यादन्तरायता / नैवं सर्वत्र सर्वेषु, तद्ध्यान्ध्यं तव दुस्तरम् // 8 // 'अच्छंदा ये न मुंजती'त्यादिसूत्रे गणी जगौ। अभोगेऽप्यन्तरायस्योदयो वाञ्छावतां ध्रुवः // 9 // स्वाधीनान् यस्त्यजेद्भोगान् , लब्धान् कान्तान् : मियान् बुधः। अध्याहृत्यापिशब्दं तु, सोऽपि त्यागीति कथ्यते // 10 // भेदोऽभोगेऽत्र चारित्र-मोहोपशमसम्भवात् / विरक्तिपरिणाप्रमादेरन्यथा न कथञ्चन // 11 // सिद्धानां सर्ववेत्तृणां, भोगोपभोगसम्भवा / सर्वा क्रिया न चैतेषा-मंशतो विघ्नवेदनम् // 12 // न च वाच्यं स्वपरयोस्तत्वबोधी यतो // 7 // P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gon Aaradhak Trust