________________ धर्मोपदेशः (3) ... आगमो धर्मोपदश ____ भो नरवर ! संसारे पढम चिय दुल्लहो मणुयलम्भो / तत्थवि य निरुवचरिया कुलरूवारोग्गसामग्गी द्वारककृति-IM ISI // 1 // तीए वि परतुरयजोहरहनिवहभूमिभंडारं / भयवस-नमंतसामंतमंडलं नरवइत्तपि // 2 // तत्ववि सचूलसन्दोहे सत्थवियक्खणेहिं अञ्चतभवविरत्तेहिं / कुसलेहिं समं गोट्ठी दुल्लंभा थेवमेत्तावि // 3 // एयं च तए चारित्र सयलं संपत्तं पुण्णपगरिसवसेणं / ता एत्तो सविसेसं पाणवहाईण वेरमणे // 4 // जयसेवणमि सुगुणजणमि धर्माकष्टर करुणाय दुत्थियजणाणं / धम्मत्थविरुद्धविवजणे य परलोयचिंताए // 5 // भंगुरभवभावणंमि तहय वेसइयसुहविरागंमि / तुम्हारिसेण नरवर ! पयट्टियव्वं मणो णिचं // 6 // इति धर्मोपदेशः। सचूलचारित्रधर्माष्टकम् (4) नत्वा जिनेन्द्रं सुरराजसेव्यं, क्षीणाखिलापायमशेषबोधं / स्याद्वादधर्मप्रणयैकवीरं, धर्म स्वरूपेण IF! वदामि किञ्चित् // 1 // प्रोक्तः केवलिभिर्धर्मः, सर्वप्राण्यवनक्षमः / सत्येनाधिष्ठितो मूलं, विनयस्तस्य, MAI शिष्टगः // 2 // क्रोधशान्तिः प्रधानाज, स्वर्णरूप्यविवर्जनः / शमेनाढ्यः सुगुप्तश्च. नवभिर्बह्मवृत्तिभिः॥३॥ अपचो भिक्षया वृत्तिः, कुक्षिशम्बलतान्वितः / अग्निगेहैस्तु शून्योऽयमात्मक्षालनगर्मितः // 4 // त्यक्तदोषो / गुणग्राही, विकारैः सर्वथोज्झितः। हिंसादिविरतेरम्यो, रम्यः पञ्चमहाव्रतैः // 5 // सन्निधिर्न सुसंवादी, NI संसारोत्तारणे क्षमः / पर्यन्ते यत्र मोक्षोऽस्ति, धर्म एतन्मतोहंतः // 6 // द्वाविंशत्या लक्षणानामेवं पूर्णो जिने- Ki d श्वरैः। धर्मो नान्यैर्यतो नैते, स्वयमेतेष्ववस्थिताः // // धर्माष्टकं निर्मलता गुणाढ्य, धर्म निदेष्टुं तु शुभा शयेभ्यः। कृतं सदाप्ताग़ममन्दिरेणानन्देन रम्ये सुरते स्थितेन ॥८(कपच्छेदतपैः शुद्धो, धर्म आख्यात // 6 // Jun Gun Aaradhak Trust IDIP.AC.Gunratnasuri M.S..