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________________ यतिधर्मोपदेशः आगमो- द्धारक कृति संदोहे धति केनचित् // 136 // श्रुत्वा यक्षासमा आर्याः, प्रेक्ष्य वज्रसमान् मुनीन् / कः श्रुतेन मदं कुर्याद् ? रश्चक्रिपुरो यथा // 137 // गतो 'जन्तुंनिगोदेषु, शाकलभ्यार्पणं गतः / निरादिके भवे भ्रान्तः, गुरुबतेऽत्र को मदः? // 138 // यथा भ्रम्यां स्थितो बालो, नोच्चस्थोऽपि मदं व्रजेत् / विदन् क्षणान्तरे पातं, को मदोऽतो भवभ्रमे?॥१३॥ किं मदेन गुणाढ्यत्वे, हीनगुणेऽप्यनेन किं ? / न मदेन गुणोत्पादो, गुणहानिस्त्वतो घना // 140 // मोक्षाध्वा प्रगुणस्तस्य, मदं हत्वा भवेन्मृदुः / लघु ग्रामं गमी गन्ता, ऋजुर्वको विलम्बतः // 141 // गुणान्वेषी मुमुक्षुः स्यान्तामृदोरेषणा गुणे / गुणप्राप्योऽपवर्गोऽतो, मानिनो नहि सम्भवेत् // 142 // अनादितो गुणहीनस्तान यात्येतत्प्रशंसया / दर्शनशानचारित्र-शंसाऽचारोऽत्र सत्तमः / / 143 // प्रेक्षेतावममात्मानं, यस्तस्मिन् स्याद् गुणागमः | गु| णापूर्ण मनो दृष्ट्वा, कथमायान्ति सद्गुणाः? // 144 // गुणाः कर्मक्षयायालं चेत्ते तं कुर्युरजसा / युक्ता अन्यत्र ते तं न, तडागाम्भोऽग्निवत् क्षमाः // 145 // स्वभावतो गुणाः सर्वेऽनुबन्धिनो गुणावलौ / चेत्ते दोषेषु. युज्यन्ते, यतन्ते दोषपोषणम् // 146 // परिकृत्तश्रुतौ पुंसि, कुण्डले कोऽपि नार्पयेत् / मुनौ विनयहीने न, मुक्त्यहै श्रुतमर्पयेत् // 147 // नामिमानी गणे तिष्ठे-नागणस्य श्रुतक्रिये / श्रुतक्रियोद्भवो मोक्षो, मोक्षाश्यति मानवान् // 148 // विद्यां दातुं समायातोऽतिशयी कोप्युपाश्रयम् / अविनीतान्मुनीन् प्रेक्ष्य, बहिर्व्याघुट्य जम्मिवान् // 14 // विनयः शासने मूलं, विनयादभिगम्यते / लोकेऽपि शिक्षिता अश्वाः, सक्रियन्ते पदे पदे // 150 // सामाचार्यः प्रदीयन्ते, धार्यन्ते च मुनीश्वरैः / प्रद्धर्न ता विना मोक्ष प्रापकं चरणं भवेत् // 151 // आचार्योऽपि गणाधीशोऽधीत्यादी वन्दतेऽपरान् / नम्रो विनयवान् साधुर्यथा वृक्षः फलोच्छ्रितः // 152 / / गौतमोऽपि गणिप्रष्ठः, प्रेक्ष्य ज्येष्ठकुलं गतः / केशिनो न समीपं कि,? श्रुत्वैतद्विनयी भव // 153 // क्रोध हत्वा मनः शान्त, विनयेनार्जिता गुणाः-मान निहत्य शोध्यास्ते, यदि फलस्य संस्पृहा / / 154 // क्षयोपशम एवादौ, कर्मणां गुणहेतुकः / तत्रांशेनोदयोऽवश्यं, सातिचारास्ततो मुखे // 155 // अत एवोच्यते सुरादौ स्यात्सातिचारता। क्रियाणां निरतिचापा, फलरूपा क्रियास्ततः१५६। गुणस्थानेषु.ष प्राक, प्रमत्तसंयताभिधम्।अप्रमत्तःसंयतः स्यात्ततोऽश्रे सप्तमे गुणे / / 157 // आद्यानि | सकषायाणि, गुणस्थानानि तत्पुरः चत्वारि निष्कघायाणि, न प्राग व्रतमुसमं ततः॥ 158 // वर्जनेनातिचाराणा, धर्मा प्राग यतते यतः / सातिचारमनुष्टान भतिचारभयान्विते // 15 विमति नातिचारेभ्यो, धमै च "तनुते पुमा- . , .. P.P.AC.Sunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036408
Book TitleAgamoddharak Kruti Sandohasya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherMithabhai Kalyanchandji Pedhi
Publication Year1962
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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