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________________ आगमोद्धारकप्रति सन्दोहे // . शानावृतेर्जन्तु श्रुत्वा पुण्यपापवित् // 113 / / स्वयम्बुद्धा जिनास्तेपि, प्राग्भवे गुरुबोधिताः / जाता अप्रतिपातेन, बोधवन्तो भवेऽत्र हि // 114 // येपि श्राद्धकुले जाता, निसर्गेणैव सदृशः / प्रायस्ते प्राग्भवे चीर्ण-मोक्षमार्गा| गुरोर्मताः // 115 // जीवाजीवाऽश्रवबन्धाः, संवरो निर्जरा शिवं / नातीन्द्रियार्थहग्वाणी-श्रवणात ऊह्यते // 116 // अत एव हि सम्यक्त्वे, प्रतिबन्धकशान्तितः / लभ्येप्युक्तमार्यवयरुपदेशोद्भवत्वतः // 197 // अविनीतो मदाध्मातो, न स्याद् विनयवान् गुरौ / शुश्रूषकः, श्रुतशानी, कुतः स्वप्नेप्यसौ भवेत् // 118 // एष्वज्ञातेषु | तत्त्वेषु , परोक्षं सर्वथा शिवम् / विद्यात्सदा ज्ञानपूर्ण, जन्ममृत्यादिवर्जितम् // 119 // संसारे यत्र कुत्रापि, जायते जन्तुराश्रये / दुःखं जन्मजरामृत्यु-सम्भवं ह्यनिवारितम् // 120 // सामस्त्येन सरत्यत्र, जातोऽशी प्रोज्झ्य मेलितम् / अतः संसारसञ्जाऽत्र, सार्थका बुधदेशिता // 121 // मेलितं नहि मोक्तव्यं, त्याज्यं स्थानं न च श्रितं / सच्चिदानन्दपूर्णत्वं, सदाऽत्रातो मतं शिवम् // 122 // शिवे झाते स्वरूपेण, संसारे दुःखसकुले / भव्यो जीवो भवेत् साध्ये, शिवे यत्नपरः सदा // 123 // निश्चयः शिवसाध्यस्य, हेतुः सम्यक्त्वगः परः / शिवसिद्धथै ततो धीमान् , झीप्सति प्रापकेतरे // 124 // बन्धाश्रवौ भवे हेतू; शिवे. संवरनिर्जरे / मनुते गुरुसद्वाफ्य-सुधापुष्टान्तरो नरः // 125 / / एतदेवं गुरुदद्याद्, झानं संसारतारकम् / अन्यत्रासुलभ, लोको, दद्याज्ञानं भवप्रदम् // 126 // हानान्मानस्य विनयाद् ,गुरोर्शाते इमे उमे। हानायाश्रवबन्धानां, ससंयम तपश्चरेत् // 127 // विनयाद गुरुकुले वासस्ततो ज्ञानादयो गुणाः / विवधन्ते, ततो मुञ्चेद्, गुरुं यावद्भवं नहि // 128 // सहानेकैर्यजेत् सिद्धि, विनयी गुरुवासयुक / नैकसिद्धा हि भूयांसो, जह्यान्मानमितो बुधः // 129 // दृश्यतां मानमत्तोऽसौ, भरतो लघुबान्धवान् / अभ्यषेणयदुज्झित्वा, मर्यादां कुलगां निजाम् // 130 // बाहुबली मदारूढो,.यानुपर्षभमात्तिमान् / शानिभ्यो लघुबन्धुभ्यः, सम्भाव्योनत्वमात्मनः // 131 // त्रिपृष्ठो मानतोऽकार्षी-निदान मथुरापुरि / प्राग्भवेऽतो गतः श्वभ्रं, न कर्म पक्षपात त् // 132 // मेघाम्भोभिः परिप्लाव्य, साकेतं नापसौ मुनी गतौ श्वभ्रन कि मानो, महान्तमपि पातयेत् ? ॥१३शासीतां सती विदन् लकाधिपो मानादनपर्यन् / सराष्ट्रराज्य स्वकुलं, न विनाश्य गतस्तलम् ? // 134 // मार्दवेन ततोमान, निहत्य गुरुमाश्रयेत् / ज्ञानश्रेष्टा गणिप्रष्टा, याबज्जीवं यथा जिनम् // 135 // श्रुत्वा गुरुमुखाद् भूयोऽमुत्र तद्धीनता मदाद् / गुरुसेवी बुधो जातु, नहि मा. P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust Sincludivlialive HimalshetaneDallasticelordPremidioidishabharattniversies mainpinte r estination
SR No.036408
Book TitleAgamoddharak Kruti Sandohasya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherMithabhai Kalyanchandji Pedhi
Publication Year1962
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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