________________ कैति आगमो. राणां फुले जाता, फुलधर्मतयाऽसुमात् / शुद्ध देवं गुरु धर्म, संश्रयन्नपि सप्तयां // 692 // चेन्नाव्ययपदाप्य तान् / यतिधर्मा सेवने मनुतेपि वा / *सर्गिक न सम्यक्त्वं, वैस्सत्राभिमन्यते // 693 // सन्नरोहतनूरिक्तं, शिवं साध्य - हारक पोशा रन् हृदि / कुदेवगुरुधर्मेष रुचिमान्न शमव्यकः // 604 // त्यागस्य धर्ममूलत्वात्, प्राणी धर्माय दानंकृत् / लार्म सन्दोहे लाभ पुरा मन्वंस्त्याग लाभतया गणेत // 695 // इन्द्रियार्थ सिद्धेष प्रागभूद्वर्षपूरितः। नियम्य तांस्तु शीलेन, दृष्टो // 32 // धर्मे ऽधुनाऽभवत् // 66 // आबाल्याद्गदिरस्यासीद, भोजने रससम्भृते / त्यागेनास्य रतिर्जाताऽनशनादि तपस्थतः / / 617 // प्रत्यई पुगलासतेभीवोऽभूलोभमूलकः / धर्म प्राप्तेऽधुना भावो, भावनासूपसंहृतः // 608 / / यथाभद्रोऽपि धर्मार्थ पात्रे दादद-सुधीर त्यागमेव पुरों धत्तं, धर्मकार्येषु नापरम् // 699 // कानिचिहानदक्षाणि, कुलानि धर्मभावनाम् ।धृत्वा दाने प्रवत्तन्ते, त्यागो धर्मस्य कारणम् / / 700 // जातास्तीर्थकरा जीवा, मिथ्यात्वेपि साधुष / दवा दा यथाभावं, किन त्यागेन जायते ? // 701 // विना मावेन धीरायामिनव| अष्टा पुरा / यह तन्नरामय-संसदः स्तुतिकारणम् // 70 // . श्रीधन्यशालिभद्राद्या, यथाभद्रा असशः। नावा सन्मुनये दान, किं नावन्नरोत्तमाः / / 703 / / व्रतमूलमहिंसा सा, यथार्थी जैनशासने / षड्जीवकायजीवत्वं, तथान्य न कुत्रचित् / / 704 // नासनसम्यक्त्वेऽमिगते द्रव्यतोपि च / तद् अवानिः स्युः परं वाने, नियमौ नहिं तस्य तु // 705 / / विना सम्यक वनखिल, निष्फलं विति यन्मतम् / मोक्षमागतया तत्त, माग: स्यत्किथमन्यथा // 706 // दाने त्यांगस्तु सम्यक्त्वे, मिथ्यात्वे वापि शस्यते / मार्गानुसारिणी चेष्ठा, प्रशंसा किमु नाहेति // 707 / / मिथ्यादक शुहग्वापि, दद्यात् शुदाय साधवे / कल्प्य यदन्नपानादि, सुर्वत्रत्यागशस्यता // 708 // बतानि पालयन् श्राद्धो, द्वादशापि सुमिना / सप्तक्षेत्र्यां च रच, ददत् श्राद्धी महान् मतः // 709 // सर्वे जिनेश्वरा दीक्षा-कालात् प्राग्व-सरं समम् / यारच्छिकं दर्शनं, त्यागधर्म समाश्रिताः / / 710 // जीकस्ति यादिवस्थान श्रावन श्रावको जनः / नियमात् कुरुते दुःस्थे-ऽनुकम्पां प्राणिनि स्फुटम् // 711 // दीनानाथेषु यो दान, दद्यातस्य गृहे बहुः / त्यागोऽन्नादेस्ततः साधो, शुाहारसम्भवः // 71 प्रचुरत्वान्ना कर्माव-भक्तादौ सम्भवः खलु / मितम्पचे दयाहीने, गृहे भवन शुध्यति / / 713 // अनुकम्पापसीतार' किं, जि म.AC.Gunratnasuri M.S. Harisash i rasting .