________________ x कृति मैं दुखें, तपसा क्षपयेन्नहि / अमीता दुर्गतिस्तत्किं, तो गते न करिष्यति // 624 // कर्मणः कर्ममूलस्वासदनादेम- / / द्वारक वत पुनः / अशस्य पुरतो वृद्ध, कथं भोगेन नश्यति // 625 // भोक्तव्यं यत्कृतं कर्मावश्य भोगो द्विधा पुनः रसप्रदेशमेदाभ्यो, रसस्य तपसा क्षयः / / 626 // अपथ्ये भोजने यददगदरसशोषणम् / निबद्धकर्मणां सद्वत्, पदेशः सन्दोहे तपसा रसशोषणम् // 627 // निर्विकाराः प्रदेशास्ते, नाशमाप्नुयुरञ्जसा / निर्विकारं यथाऽपथ्य, कायाच्छीनं // 29 // 'वियुज्यते // 628 // कर्मघाति तपश्चेन्न, बहुजन्मार्जितैनसः / न देहिनो भवेन्मोक्षो, यथा भोगेन जीवितम् // 629 // अशाना भानसम्पन्ना, समिथ्यात्वाः सुदर्शिनः / कुवृत्ताः शुभवृत्ताश्च , प्रत्यक्षं बहुसंक्षयात् // 630 // कर्मभ्यो बद्धयमानेभ्यो , बहूनां चेत् क्षयो भवेत् / न भोगमात्रजन्यस्तत् , क्षये हेतुः परो. भवेत् // 631 // बद्धकर्मक्षयश्चन्न, विना भोगं तदा वृथा / सर्वे धर्मा मुधा चैव , प्रायश्चित्तविधिः पुनः // 632 // लोके कृतापराधोऽपि , सान्त्वयेन्नामनादिभिः / यथा तथोपात्तमहः, किं न शोध्यं तपोमुखैः / // 633 // कर्मणा बध्यते जन्तू, रागद्वेषरसाकुलः। रागद्वेषौ विनिर्धात्य, हन्यहः किन ससंपाः // 634 // कर्मकाष्ठाग्निरेवेदं, नापरं कर्मदाहकम् / / असों द्वादशधा प्रोक्तं, निर्जरायां तपो बुधैः // 635 // . ये संवरमनाधाय, तपस्यन्ति विमुक्तये / तेऽन्धवानवत्सखाद-न्याये सफलताभृतः // 636 // मासोपवासतो यन्न, कर्म चिक्षिपुरादरात् / असंवृता नरो शानी, तदुच्छ्वासतपाः क्षिपेत् // 633 / / आमयं मूलतो हन्ति, सानुपानं यथौषधम् / कर्माण मूलतो हन्ति, तथा सेवरयुक। तपः // 38 // अकामा निर्जरैषा यसपासंवरवर्जितम् / तैलिको गौर्न यद्याति, गव्यूर्ति मासगाम्यपि // 639 // H / / अत एव महादुःखा, क्षुतृडा_निपीडिताः / नारकाद्या न मुच्यन्ते शतस्ते नहि संवृताः- 640 // तनोर्मोह.. 18 समुन्सृज्य, विषयेषु च पञ्चसु / दुःखद्वषं सुखप्रीति, कुर्याद्वीर्यासपो मुनिः // 641 // प्राधान्यं ममतापते- रिस ... तीर्द परणं मतं / चारित्रमोहनाशोत्थ, प्रत्याख्यान ततो मतम् // 642 // रथस्य चक्रयुग्मेन, वर्त्मनि स्यात् .. * प्रवतंत्रम् / मोझे तथैव जीवाना, तपः संयमयुग्मतः // 643 // अतोऽनगार सायां, तपःसंयमभाविताः / प्रा* मानुग्राममायान्तों, वर्ण्यन्ते मुनयः श्रुते // 644 // ज्ञानाग्निः संर्वकर्माणि, भस्मसात् कुरुते विति। शीलहानवचो, शानक्रियाभ्यां कर्म वह्यते // 645 // तत्रापि साधनं शान, बन्धनाशविबोधने / तत्पूर्विका क्रिया स्यात् का Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.