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________________ आगमो पदेशः // 26 // . को भूत्वा, कषायश्चितुरस्त्यजेत् / / 558 // जीवो गृहाति योगेभ्योऽनुक्षणं कर्मसंहतिम्। संयमेन विशुद्धात्मा, तदैव तां विनाशयेत् // 55 // यथाख्याते च चारित्रेऽधिगते नैति बन्धनम् / अवेद्यं कर्म तदपि, वेद्यं समयमात्रगम् ॥५६॥चारिप्रमोहनाशेन, चारित्र परमं भवेत् / परमासंयमस्तु स्या-दयोगे :योगरोधनात् // 56 // मोक्षमार्गतया प्रोक्तं,चारि यम्महर्षिभिः। मार्गः साधनमित्येवा-मिप्रेत्य नतु साध्यताम् // 562 // संयमोऽयोगपर्यन्तोऽयोगश्च द्विविधो मतः / आयोऽयोगो भवस्थानां, सिद्धानामपरः, पुनः // 563 // समानेऽपि च जीवत्वे, सिद्धानां नहि बन्धनम् योगातीतदर्शतेषां, सदा संयमसिद्धितः // 56 // चारित्रस्य प्रतिक्षा ऽभूत, तच्च सामायिकादिकम् / भवान्तेन समें साऽगाद, तत्सिद्धो न चरित्रवान् // 565 // अचास्त्रिा च या वृत्तिः, कौघस्य निबन्धिनी / न सा सिद्धेऽत उक्तोऽसौ, न युक्तो नाऽव्ययुक्तकः॥ 566 / / जीवाजीवात्मकं तत्वं, नैतद्भिन्नं जगत्त्रये / सप्ततत्त्वी तथाप्युक्ता हेयाव्यप्रसिद्धये।। 567 // परमार्थन-मोक्षस्तू -पादेयोऽत्र शरीरिणाम् / परं न स स्वरूपेण, सिद्धो यद् गृह्यते महि / / 568 // प्रतिबन्धक्षवादात्म- स्वरूपं प्रकटं सदा / सैष तज्ज्योतिरिव तु, दीपकायात् स्वयं भवेत् / / 569 // अभावः प्रतिबन्धानां, गुणसवातघातिनां / नवागमानां रोधे स्यात्, क्षयोऽपि तत्त्वतस्ततः // 570 // समुच्छिन्नक्रिया-1 ध्यानाद, गणस्थाने चतुदेशे / सर्वान्त्यकर्मनाशेऽपि, तदयोगीति कथ्यते // 571 // संवरात्मा सरोधः स. उस्कृष्टः संयमः पुनः / तत्त्वतः सप्ततच्या या, कथा सा. संयमार्थिका // 572 // रत्नत्रयी समादेया, सम्यक्वाथा मता क्षुते ।युज्येते निश्चिती बोधे, द्वे आधे व्यापृते न.च // 573 / / प्रतिबन्धनिरासेऽव्यों, व्यापार संयमाश्रिता। तपो बलं संवृतेर्यदन्यथा गजधावनम् // 574 / / तथाच साधनं मुक्तेः संयमः परमं मतम् / साधवोऽप्यत उच्यन्ते नम्याः संयमिताधराः (नामतः) // 575 // विहरन्तः समे प्रोक्ता, संयमेनैव भाविताः / साधवो मोक्षमार्गस्य, स्वपरय प्रसाधकाः // 576 // यद्यप्यात्मगुणो शान मुत्तमं स्वस्वभावतः / परं जन्तु मिरादेयं, हेयादेयप्रसाधनात् // 577. कण्टकादि अपश्यन्तो, हानादानोद्यता नहि। चेत् तद् वृथा दर्शनं त-दन्धान्नहि विशिष्यते // 578 // अत.एवं नयद्वारे, यतितव्येन देशना / उपादेये च हेये च, तज्ज्ञानं संयमात् फलि // 572 // चतस्रो गतयो शान-दर्शनवसनसाः / मुक्तिर्न तासु यत्तासु नहि सर्वासु संयमः // 580 // सज्ञिपञ्चाक्षतिर्यश्चोंऽन्त्ये प्र " Babidasidin.dhandabasindi bidiockasikakilMilaiac.unsahakataradiatockerractorolaitakisationali Jun Gun Aaradhak Trust t iesthaaraats m irmthit
SR No.036408
Book TitleAgamoddharak Kruti Sandohasya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherMithabhai Kalyanchandji Pedhi
Publication Year1962
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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