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________________ स आगमोद्वारक . . .कृति सन्दोहे // 25 // - तींद्रियार्थानां, कथं सत्यप्ररूपकाः ? // 536 // स्वां मूत्तिं शस्त्रमालाकां, रागद्विइमोहसूचिकां / स्थापयन्ति कर्थ शौचं, सत्यार्थानां प्रशासने ? // 537 // आरम्भार्थेषु ये सक्तास्ते किं सत्यानुवादिनः / यद्वा तद्वा जना किन, ख्यान्ति स्वार्थकतत्पराः? // 538 // अत एवोच्यते सद्भि- शीलो शानवानपि / उपजीव्यो. जलापूर्णो, यतिधोयथा.नीवैः श्रितोऽवटः // 53 // शुचिः स एव धर्मः स्याद, यत्र शास्त्रेरिता किया / मैत्रीप्रमोदकारुण्य-मा | पदेशः ध्यस्थ्येन विभूषिता // 540 // देवपूजा गुरूपास्तिः, सा शुचिस्तदगुणाश्रया / या संयुक्ताऽऽन्तरभक्या, सत्काले मोक्षहेतवे / / 541 // वृत्तिायागतेद्रव्यैरन्यावश्चनयुक किया / अन्त्यापकारवियुता, चिन्ता धर्मार्थिनः शुचिः // 542 // शुचिर्या देहवस्त्रादेस्तन्नैर्मल्याय धार्यते / सा लौकिकी यतो नैषा, पापनाशाय युज्यते // 543 // // यद्यात्मा शुचितां यायाद्रागादिमलवर्जितः। यथास्थं वुध्यते पृथ्व्यादीनां भावाननीश्वरान् // 544 // अभ्रार्योगारताम्राद्याः, स्वस्वस्थानसमुद्भवाः / काठादाग्निमरुद्भ्योऽम्बु वृक्षाद्याकर्षणोद्भवाः / / 545 // शुचिरात्मा कथं दुःखसुखे स्वप्राच्यकर्मजे / भाविन्यौ पुण्यपापोत्थे, गती चेशं निमीलयेत् // 546 // ईश्वरः सर्वजन्तूनां, जीवादीनि प्रकाशयेत् / सूर्यवंज्जन्तवस्त्वस्माद्धयादेये प्रवर्तकाः // 547 // एवं कर्मापगमतः, शौचोऽङ्गी सत्यवांग्रतः। लोकानां पुरतः सत्य-मेवाख्याति न चेतरत् // 548 // झाननादृष्टनाशेन, जीवे झानं यथा स्फुरेत् / चारित्रमोहनाशेन, देही चारित्रवान् भवेत् // 542 // कैवल्यं गृहिलिङ्गस्था, आप्य चारित्रमियति / केवली भरतः शक्रेणाचितश्चरणं श्रितः // 550 // शुचिंतां प्राप्य सर्वेऽपि, संयमाध्वनि गत्वराः / भवन्ति निर्मले हेन्नि, कालिमा स्यात् किमंशतः / AL552 // आत्मज्ञाननिलीनानां, कर्तव्यं नावशिष्यते / वागियं शानपापानां, स शानी फाल्गुनाभवत् (का) / / 552 // शानिनःसंयमे मना, आश्रवेभ्यस्तु निर्गताः / नोच्चलो भवेज्ज्ञानी, संयमो ह्यात्मरक्षकः // 553 // संयमः सप्तदशंधा, पृथ्वीरमादिसाधनैः / हिंसा यत्सर्वपापेषु, प्रथमं पदमञ्चति // 554aa चरंस्तिष्ठन् समासीनः, शयानोऽनन वदन् नरः / जीवरक्षापरः स्याच्चेल्लेशेनापं न गच्छति // 555 // रक्षायां निरपेक्षो यः, स हिंस्रोऽहिंसकोऽपि सन् / बधीयाचिकणं पापं, पाके यस्य फलं कटु // 556 // निर्विकल्पवशोपेतो, जिनः केवलितां धरन् / संयमा.. // 25 // यैव तत्याजा-न्धःसदोष न किं प्रभुः // 557 // स आत्मो संयमी.यः स्याद्धिसादिभ्यो निवृत्तिमान् / योंगाक्षगोप सर्व एवं कर्मापगमतः // 548 // ज्ञान 0 कोबा (गाधीनगर) पि 382004 श्रीमहावीर जन आराधना केन्द्र 1. श्रीकैलासराागरारि ज्ञानमन्दिर र मवेत् // 54 .. " PP.AC.Gunratnasuri M.S. .: Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036408
Book TitleAgamoddharak Kruti Sandohasya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherMithabhai Kalyanchandji Pedhi
Publication Year1962
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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