________________ खारक . सन्दोहे रास्तेन पुगवे / मानाधीना मेयसिद्धिस्तस्मिन्मेवोपपद्यते // 40 // दूरमन्त व्यापि, निष्प्रदेश प्रदेशयुक् / भूमि आगमो. भवद्भावि द्रव्य-मनेनाशेषमीक्षते // 472 // स्वरूपस्य पदार्थानां, केवलेनावबोधनात् / साक्षात् दृष्ट्वात्मादिसाथै, सेप्टे.यातुं तु मनुवम् // 72 // यथार्थ घेत् पदार्थानां, विना केवलसंविदं / स्वरूपमेव बुद्धन, सत्योद्यत्वं मरीचिका // 473 // बाला युवेंथाऽशाना, सत्यवादामिमानिनः। अवीतरागासर्वशास्तथा मोक्षाध्यदेशका // 2 // // 47 // धृष्टवां परमां नित्वा,छामस्थ्येन मलीमसाः। 'आत्माद्यर्थानकात्वापि, भवन्ति मार्गदेशकाः // 47 // रूपस्पर्शादिषिकलो, नह्यात्मेन्द्रियगोचरः / केवलेन बिनैतेषां, देशना ध्यानध्यमेव हि // 46 // आसतामात्ममु-१॥ ख्याना-मिन्द्रियातीतमूर्तिनाम् / असत्यान्यणुमुख्यानां, रूपं वितथमुच्यते // 47 // अनन्त अणवः सूक्ष्मा, सूक्ष्म दृश्ये न सम्मताः / षष्टित्रिशाशं तं, पृष्टत्वेन न्यवेदिषः // 478 // न वर्गणा विदुस्तेऽष्टी, पृथ्व्या दीस्ते पृथग जगुः / वाला अप्यधुना वायोरपांच विदुरेकताम् // 479 // प्रदेशोऽभ्रस्य कालस्य, समयः सौम्यतो / / 3 मतः / न यैप्तेिरभावेन, ते किं सर्वडताभृतः // 40 // जगत्सर्व शुभां वाचं, स्वस्मिल्लात्यतथादशं / / / सर्वेऽप्यात्मसु साक्ष्य, लान्त्यल्पमतमा अपि // 481 // रागो द्वेषो महामोहस्त्रयोऽप्येते सुदुर्जयाः / वैराग्येण / / यस्तेषां तच्च दुर्लभमहिनाम् // 482 // अनिर्जित्य महामोह, सार्वइयं न श्रयेज्जनः। नाविभाते विभाते स्याद्वानोरुदयसम्भवः // 483 // असर्पक्षो जनो भूयान् , सर्वसत्यामिमानवान् / दुर्लभ तत्त्वसज्वानं, सेन सत्यं सुदुर्लभम् // दुर्लमे तत्त्वसज्याने, सत्यधर्मनिरूपणं / दुर्लभ सेन जीवानां, दुर्लभा शुद्धधर्मवाक | // 48 // सद्धर्मश्चेच्छ धर्मनाम्ना जनो भ्रमेत् / सूक्ष्मबुद्धया ततो धम, परीक्षेत हितावहम् / 486 ॥न पन्धेन परीक्ष्यं स्यात्, सनं भुवि दुर्लभं / सूक्ष्मघुद्धया विना धों, न परीक्ष्यो नृणां भवेत् // 487 // शाकेऽपरीक्षिते धनं, धान्ये मासोऽशुके ऋतुः / दारेषु जन्म धर्मे तु, भवाः सख्यातिगा वृथा // 488 // दारेश्वयें गृहे धान्ये, क्षेत्र वादार सुनिर्णयाः / धर्म वादच्छिदाऽरक्तेऽद्विष्टे सा दुर्लभा. दशा // 489 // त्यज्यते बसनं लोक सुरादिसम्म सुखं / दुर्घमेण कृतो पासो, न गच्छति भवान्तरे // 490 // तथाभव्यत्वपाकरचेजी कालादिमिर्मवेत् / स्वभाषतस्सदा सत्य, धर्म रोचति नान्यथा // 491 // योगिनवान वानमा सत्र TASHARMAkMediiadincataanta r