________________ यतिधों आगमोद्वारककृति सन्दोहे // 21 // पदेशः चाप्नोति, सार्वजय वीतकल्मषम् // 448 // अतः सर्वक्षमूल स्यात् , सत्यमात्मादिगोचरं। तथाभूतान.ये ते न; सत्यात्मादिप्ररूपिणः // 12 // अशरीरे न.सापश्य, संयमादि न तद्विधे / शरीरं नाऽस्त्यबन्धस्य वृथाऽनादीशकल्पना // 450 // सिद्धो बुद्धो. विमुक्तरचे ति प्रत्यर्थिभुवो गिरः / बन्धो शानादिमि श्यो, वृथाऽनादीशकल्पना 51|| समानेपि च, जीवत्वेऽनादिशुद्धाः परेन किं? | शानादिलक्षणाः सर्वे, वृथाऽनादीशकल्पना // 452 // सर्वज्ञोऽसाविति प्रोक्तं, सर्वक्षेनेतरेण. वा / विधाऽपि, सार्वतोत्पादो, वृथाऽनादीशकल्पना // 453 // आत्माद्यतीन्द्रियार्थानां, देष्टा सर्वशतायुतः / न चेद् व्यर्थानि शास्त्राणि, वृथाऽनादीशकल्पना // 54 // देष्टा मुखेन सहितो, मुखं तनुयुजस्तनुः / नाकर्मणों न सोऽबन्धो, वृथाऽनादीशकल्पना // 455 // कालस्यानादितां नित्यानन्तता परमेशिनां / पूर्वे पूर्व हेतवोऽमी, वृथाऽनादीशकल्पना // 456 // बन्धोऽपि कर्मणोऽना दिः, कृतकोः वर्तमानवत् / साधनादी. व्यक्तिवाही,. वृथानादीशकल्पना // 457 // अकर्मणोऽपि बन्धश्चेत्, सिंद्धेऽनाश्वास आदर:...न धर्म, कर्मणोऽहेतोवृथानादीशकल्पना // 458 // नाबन्धस्योदयो नैवानुदये कर्मबन्धनं। निबन्धोऽतः शिवेऽयोगो, वृथाऽनादीशकल्पना // 451 / / विना धर्मण सिद्विश्वेद, वृथा. धर्मार्थिता नरे। सद्धर्मणैव, सिद्धिश्चेद, वृथाऽनादीशकल्पना // 460 // सम्बोधसुवृत्तानि, सिद्धहेतुर्यदा मतः / तान्येवाहत्य सिद्धिश्चद् वृथाऽनादीशकल्पना // 461 ॥कहींनं न कर्म स्यान्न कर्ता कर्मवर्जितः / बीजारे यथाऽनादे-वृथा इनादीशकल्पना // 462 // आत्मा शानगुणो द्रष्टा, सुखदु:खविमुक्तिमान् / युक्तो दृष्टया प्रवृत्त्या चायुस्तनू गोत्रदानयुक्. // 463 // आत्मानमष्टधा..कर्म-शान्तेरुदयाच्च सत्फलं / सर्वाण्यप्यविशेषेण, नाशयित्वा शिवं बजेत् // 464 // अशानाः कर्ममेदानां, गुणाना- मात्मभाविनाम् / अवित्त्वा तत्क्षयोपायं, कथमाचर्य सिद्धिगा। // 465. सिद्धौ, जिगमिषा येषां ते. प्राक्तत्प्राप्तिनिश्चयाः। चरमा गते व्रते, निश्चितिरेवमनिनाम् // 466 // सिद्धिरेव जगत्यर्थो, तापरः परमार्थभाक ! विहायैनां च तन्मार्ग, जगत्सर्व भयं मनेत् // 47 // सिद्धयथा साधनान्यस्या, बाधकानिःच.श्रीप्सति / शात्वाश्रववन्धौ तुष्टो, यो तपसि वर्तते // 468 // एवं च शानदर्शन| चारित्रैरांत्मशुद्धिमान् / ज्ञाननादीनि हत्वा सोऽरागः केवलमाश्रयेत् // 469 // द्रच्याध्वकालभावात्मा, सर्वोs " // 21 // P.P.A.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust