________________ आगमोद्धारक कृति सन्दोहे // 12 // प्लवः / तदेतरविनाशेना-खिला नश्यति सन्ततिः॥२२८॥ या लोभलाभयोरत्र, सन्ततिः स्याहुरन्तका / लोभनाशैक यतिधर्मोंनाश्या सा, मूलाल्लोभ त्यजेत् सुधीः // 229 // लाभो न जनयेल्लोम, तद्गं लोभ यदि त्यजेत् / लामो न लोभ पदेशः मात्रोत्थः, सोऽन्तरायक्षयोद्भवः // 230 // लोभः स्वतन्त्रत्याज्योऽस्ति, तत्यागे लाभवानपि / कर्मणा बध्यते नैव, लोमेऽलामेऽपि बन्धवान् // 231 // हते लाभेपि लोमेन, श्रयेतां कर्मणां दृढौ / जीवे स्थितिरसौ यौ द्राक, सम्परायप्रवर्धकौ // 232 // हते लोमे तु लाभान्न, प्रकृत्यंशोपि कर्मणां / प्रातिहार्योद्धवा पूजाऽबन्धके केवलिन्यपि // 233 // लामे नैकतरोऽपि स्याद् , बन्धो नैवाश्रवो न च / कषायजाश्रवो लोभाद्वन्धोऽस्थितिभा--" वयोः // 234 / / लोभ औदयिके भावे, लाभः शस्तेषु विष्वपि / लोभः कर्मविकारात्मा, लाभस्त्वात्मगुणोऽनघः // 235 // लोभ न जनयेल्लाभोऽननुबन्धी शुभोदयात् / यो लाभो जनयेल्लोभ, सातिचारवृषोद्भवः // 236 // लो 78178 भानुबन्धिनं लाभ, ये श्रितास्ते तलं गताः / लोभानुवन्धरहित-लाभवन्तो दिवं गताः // 237 // शर्करामाक्षिकातल्यो, जीवो निर्लोभलाभभाक। सरलेष्मसरघातुल्यो, लामे लोभानुगे रतः // 238 // लाभाय लब्धातीसर्गः, शास्त्रेणापि प्रणोद्यते / लोभाय लब्धातीसर्ग,ऋषीणां गर्हणास्पदम् // 239 // लोभस्यापि समुत्सर्गः, शस्तो नो लोभहेतवे / लाभाय त्वतिसगोऽस्य, लोभस्य शस्यते ध्रुवम् // 240 // लोभस्य परिहारो येऽन्तलाभविभावनात् / अभव्या वापि ते भव्या, न कश्चिन्नियमोऽमुतः / / 241 // अलोमकं पदै ध्यात्वा, ये लोभत्यजनोद्यताः ।भावलिङ्गा पदं लातुं, योग्याः, सर्वज्ञताङ्कितम् // 242 // त्यागे लाभस्य लिङ्गं स्याद्, द्रव्यरूपं स्तुतेः पदं / भावलिङ्गं भवेल्लोभत्यागान्निश्रेयसास्पदम् // 243 // लोभतित्यक्षया प्रोक्तं; परिग्रहान्निवर्तनम् / लाभतित्यक्षया परिग्रहान्नि'वर्तन तथा // 244 // लोभबुद्धया मवेल्लामे,कर्मणामाश्रवस्ततः / उपसृष्टो गृहस्तस्मा-दाप्तः पञ्चम आश्रये // 245 // साधत्वे बाधमाधत्ते, लामो लोभाविलात्मनि / निर्लोभलाभहीनो न, क्षमः स्यान्मोक्षसाधने // 246 // नग्नाटा निद्ववाः सर्वे, विसंवादिपदं गताः / उत्थाप्य नितरां लाभ, लोमेमोज्झितमीप्सितम् // 247 // परं पोते.पतत्रीवाS-I पानालयतम्बकम् / धितास्ततोऽभवत्तेषां, न्यायो ज्वरपलाण्डका // 248 // लोभयुक्तोऽहता लाभस्त्याज्यत्वेन शनिवेशित गृहत्यागे त्रिंत किंन, निग्रंथत्वमुदीरितम् ? // 249 / / नैकेन्द्रियाद्या वखाधे, रहिता अपि साधष P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust