________________ और द्धारक पदेशः कृति सन्दोहे // 10 // गांवल्सको यथा // 205 // सयोगः कुरुते कर्म, सयोग एव तत्फलं / भुनक्त्यत्र न सकान्तिः, पृथक्कर्म पृथम्भवी // 20 // अनुग्रहककर्माण, ईशाश्चेत् किं समे न हि ।अनुग्रहफला भक्ताः , परेऽनुग्रहवञ्चिताः? // 207 // निग्रहः कर्मणा स्बेन, स्वेनैवानुग्रहस्तथा / शुभाशुभानि कर्माणि करोत्यङ्गी भुनक्ति च // 208 // उमासक्तो हतः शम्भुः, पू. ज्यतां प्रापितो जने / तथास्थो नन्दिना धूतनींतःसोऽपीश्वरे पदे // 209 // सयादवपूरीदाहात् ,, सन्तुष्टानां द्विषां कृते / या लीला दर्शिता लोके, हलिना हरिवाक्यतः // 210 // सा कामगर्दभैरुक्तेश्वराथा स्वं समाश्रिता। ऋजुर्जनो न किं धूतर्वच्यते छन्नमायया ? // 21 // मोक्षमार्गाध्वनीनं चेद् , देवं गुरुंच देशयेत् / आइत्यो देशकः स स्याद् धूर्तानां.स कथं भवेत् ? // 212 / / अर्थकामैकगृद्धास्तत्, परामालम्ब्य धृष्टतां / देवानां च गुरूणां च, व्याजेन धूर्ततां श्रिताः // 21 // ईश्वरार्पितसौख्येप्सुर्मुग्धो विश्वे जनो भृशं / तत्र कामार्थगृद्धाः किं, वञ्चयन्ते ठका नहि ? 21|| सरलाः कतिचिल्लोके, सन्मार्गस्योपदेशकाः / ग्रन्थे वचने रक्ताः, श्रावका कतिचिन्ननु // 215 // अजैना गुरवः सवें, शातिं चैत्यं मठं धनम् / अधिष्ठायैव वत्तम्ते, गृहिभ्यो भारिताः पुनः // 216 // सदारा गुरवो जा ताः, सक्षेत्रा उपदेशकाः / कामभोगमयो धर्मो, न किं विश्वे ठकैः कृतम् ? // 217 // पूज्यो देवो गुरुः सेव्यः, कार्यो धर्मों मुमुक्षुमिः / मन्वानो पि जनो, धूर्तेः पात्यते भवसङ्कटे // 218 // ऋजवो मृदवाक्षान्ता, जना धर्माधिकारिणः / वदन्तोऽपीति हा!धूर्ताः, ऋद्धा मत्ता शठाः बभुः // 219 // धर्मा वैराग्यमूलाः स्युर्विरक्ता गुरवो भवात् / झानानन्दभृतो. देवा, इत्थं वादाः कृतौ वृथा // 220 // भवो जन्मादिदुःखाढयो, भवः कामक्रुदुद्भवः। वदन्तोऽपी ति संसार-तारकान्न ठका जगुः / / 221 / / क्षान्त्या धर्म परं प्राप्य, मार्दवेन विभूण्य च / शोधयित्वाऽऽर्जवेनायों.. रक्षेद् धूर्तप्रसङ्गतः // 222 // प्राप्तभूषितशुद्धन, जीवो धर्मेण नन्दति / यावल्लोभाब्धिवेलाभिः, क्षुद्राभिरपि नो यते // 223 // विकारादात्मनो रम्ये, रागालोमा प्रसूयते / जातश्चोटेलमत्यन्त, नभस्वद् ध्रुवमेधते // 24 // लन्धुमिच्छति लोमेन, लाभो लोभ समेधते / लाभलोभौ तदन्योन्यं, वघेते मानवर्जितौ॥२२५॥ बीजं यथा फलं दत्ते, फले बीजान्यनाहतम् / लोभालाभो भवेत् तस्माल्लोभश्चासीम उद्भवेत् // 226 // हते लोभो हतो लामे, भवेट बान भवेदपिलोमे हते हतो लाभो, नश्येत् सन्ततिरेतयोः // 227 // बीजे नष्टेऽश्कुरोन स्थान्, नष्टेऽस्मिन् बीजविP.P. Ac Sunratnasuri M.S. ' Jun Gun Aaradirak Trust // 10 //