________________ 279 श्री पञ्चाशक प्रकरण - 13 गुजराती भावानुवाद भंत्र (14) यूप, (15) योग भने सोमो (16) भूगर्भ - मासोबत्याहनाना होषी छ. अर्थ :- 'धाती'= पात्री होष, 'दति'= ती होष 'णिमित्ते' निमित्त होष 'आजीव'= 01 होष 'वणीमगे'= पनी५ोष 'तिगिच्छा य'= वित्सिा घोष 'कोहे'= ओष होष 'माणे'= भानहोष 'माया'= भायाहोष लोभे य'= सोम घोष 'एते'= मा 'दस'= ६शोषो 'हवंति'=छ. // 12 // 13/14. ___ 'पुट्विपच्छासंथव'= पूर्व-पश्चात् संस्तव होष माता-पिता-ससरा माहिनी परियय विज्जा'= विधा होष 'मंते य'= मंत्रघोष, 'चुण्ण'= यूए होष 'जोगे य'= योग होष 'मूलकम्मे य'= भने भूगर्भ 'सोलसमे'= सोभो 'उप्पायणयाएँ'- उत्पाहनाना मा छे. 'दोसा' होषी / / 613 / / 17/18. આ દોષોનું સ્વરૂપ વર્ણવે છે - धाइत्तणं करेती, पिंडट्ठाए तहेव दूतित्तं / तीयादिणिमित्तं वा, कहेइ जच्चाइ वाऽऽजीवे // 614 // 13/20 छाया : धात्रीत्वं करोति पिण्डार्थाय तथैव दूतीत्वम् / अतीतादिनिमित्तं वा कथयति जात्यादि वाऽऽजीवेत् // 20 // जो जस्स कोइ भत्तो, वणेइ तं तप्पसंसणेणेव। आहारट्ठा कुणति व, मूढो सुहुमेयरतिगिच्छं // 615 // 13/21 छाया : यो यस्य कोऽपि भक्तो वनति तं तत्प्रशंसनेनैव / आहारार्थं करोति वा मूढः सूक्ष्मेतरचिकित्साम् // 21 // कोहप्फल संभावण पडुपण्णो होइ कोहपिंडो उ। गिहिणो कणदऽहिमाणं, मायाए दवावए तह य॥६१६ // 13/22 छाया :- क्रोधफल सम्भावन-प्रत्युत्पन्नो भवति क्रोधपिण्डस्तु / गृहिणः करोति अभिमानं मायया दापयति तथा च // 22 // अतिलोभा परियडती, आहारट्ठाएँ संथवं दुविहं। कुणइ पउंजइ विज्जं, मंतं चुण्णं च जोगं च // 617 // 13/23 छाया :- अतिलोभात् पर्यटति आहारार्थं संस्तवं द्विविधम् / करोति प्रयुक्त विद्यां, मन्त्रं चूर्णं च योगं च // 23 // अन्नमिह कोउगाइव, पिंडत्थं कुणइ मूलकम्मं तु। साहुसमुत्था एते, भणिया उप्पायणादोसा // 618 // 13/24 पंचगं। छाया :- अन्यदिह कौतुकादि वा पिण्डार्थं करोति मूलकर्म तु। साधुसमुत्था एते भणिता उत्पादनादोषाः // 24 // पञ्चकम् / ગાથાર્થ :- સાધુ આહાર મેળવવા માટે ગૃહસ્થને ખુશ કરવા તેના બાળકને સ્નાન કરાવે, વસ્ત્રાલંકાર પહેરાવે, દૂધ પીવડાવે, ખોળામાં બેસાડે અને રમાડે એમ પાંચ પ્રકારે ધાત્રીપણું કરે તે ધાત્રીદોષ છે. તેમ