________________ 192 श्री पञ्चाशक प्रकरण - 9 गुजराती भावानुवाद અહીં દર્શનાચારમાં પ્રભાવના આચાર સૌથી શ્રેષ્ઠ છે. જિનયાત્રા એ પ્રભાવનાનું શ્રેષ્ઠ અંગ હોવાથી તેનું વર્ણન કરવા માટે આ પ્રયાસ કરાય છે. टार्थ :- 'असेसभावंमि'= नि:ति सभ्य शनना था गुपोय तो 4 'तीएँ'= प्रभावनानो 'सब्भावा'= संभवडोवाथी 'इह'= शनाया२मा 'पभावणा'= प्रत्भावना 'पवरा'= प्रधान छे. 'जिणजत्ता य'= मने नियात्रा से 'जं'= १२४थी 'पवरं'= उत्तम 'तयंगं'= प्रभावनानु 25 // छ 'ता'= तेथी 'अयं = २मा ‘पयासो'= प्रयास ७२राय छे. // 397 // 9/3 जत्ता महसवो खलु, उद्दिस्स जिणे स कीरई जो उ / सो जिणजत्ता भण्णइ, तीऍ विहाणं तु दाणादी // 398 // 9/4 छाया :- यात्रा महोत्सवः खलु उद्दिश्य जिनान् स क्रियते यस्तु / स जिनयात्रा भण्यते तस्याः विधानन्तु दानादि // 4 // ગાથાર્થ :- મહોત્સવ એ જ યાત્રા કહેવાય છે જિનને ઉદ્દેશીને જે મહોત્સવ કરાય તે જ જિનયાત્રા કહેવાય છે. તેનો દાન આદિ વિધિ છે. अर्थ :- 'महूसवो'= महोत्सव 4 'जत्ता'= यात्रा वाय छ, 'खलु'= मा 206 पास्यासंभ छ. 'जिणे'= नेिश्वरने 'उदिस्स'= 6देशीने ‘स कीरइ'= ते राय छे. 'जो उ'= 4 वजी 'सो'= तमना उद्देशथी प्रवर्तेतो ते महोत्सव 'जिणजत्ता'= नियात्रा 'भण्णइ'= अवाय छे. 'तीए'= नियात्रानी 'विहाणं तु= विधि 'दाणादि'= हान साहिछ. // 398 // 9/4 दाणं 1 तवोवहाणं 2 सरीरसक्कार मो 3 जहासत्ति / उचितं च गीतवाइय 4, थुतिथोत्ता 5 पेच्छणादी 6 य // 399 // 9/5 छाया :- दानं तपउपधानं शरीरसत्कारो यथाशक्तिः / उचितं च गीतवादितं स्तुतिस्तोत्राणि प्रेक्षणादि च // 5 // गाथार्थ :- निमहोत्सवमा यथाशस्ति (1) हम, (2) तपश्चर्या, (3) हे भूषा (4) यित सातवाध (5) स्तुतिस्तोत्र अने (6) प्रेक्ष। 421. मे नियात्रानो विधि छे. टार्थ :- 'दाणं'= हान मा 'तवोवहाणं'= तपश्चर्या 'सरीरसक्कार'= हेडनी विभूषा 'मो'= निपात छ. 'जहासत्ति'= शस्तिथी मोछावत्ता नहि 59 पोतानी शक्तिभु४५ हान साहिने ४२वा. मह '४२वा' अध्याहार से. 'उचितं च'= भने योग्य 'गीतवाइय'= [तवाठिंत्र, मह प्राकृत डोवाथी विमतिनो दो५ थयो छ. 'थुतिथोत्ता'= स्तुति भने स्तोत्र प्रसिद्ध छ. 'पेच्छणादी य'= प्रेक्ष९ वगेरे प्रसिद्ध छ. // 399 // 9/5 ઉપર કહેલા દ્વારોનું વિવરણ કરવા માટે કહે છે : दाणं अणुकंपाए, दीणाणाहाण सत्तिओ णेयं / तित्थंकरणातेणं, साहूण य पत्तबुद्धीए // 400 // 9/6 छाया :- दानमनुकम्पया दीनानाथेभ्यः शक्तितो ज्ञेयम् / तीर्थङ्करज्ञातेन साधुनां च पात्रबुद्ध्या // 6 //