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________________ श्री पञ्चाशक प्रकरण - 7 गुजराती भावानुवाद 161 सावता 'साहू'= साधुमोन 'पेच्छिस्सं'= शन रीश. 'कयपुण्णे'= तेमनाम मासाधुपयानो योग होवाथी तेसो पूर्व ४न्भमा बांधेसा पुश्यना ४यवाणा छ. 'भगवंते'= तेसो विशिष्ट भाव जैश्वर्यथा संपन्न छ. 'गुणरयणणिही'= क्षमा माहिए।रत्नोन निधान छ. 'महासत्ते'= महान व्यवसायने ४२नारा-महासत्वशाली छ. // 320 // 7/26 पडिबुज्झिस्संति इहं, दट्टण जिर्णिदबिंबमकलंकं / अण्णे वि भव्वसत्ता, काहिंति ततो परं धम्मं // 321 // 7/27 छाया :- प्रतिभोत्स्यन्ते इह दृष्ट्वा जिनेन्द्रबिम्बमकलङ्कम् / अन्येऽपि भव्यसत्त्वाः करिष्यन्ति ततः परं धर्मम् // 27 // ગાથાર્થ :- જિનમંદિરમાં શસ્ત્ર, સ્ત્રી આદિ દોષોથી રહિત જિનપ્રતિમાને જોઇને બીજા પણ ભવ્યજીવો સમ્યક્તને પ્રાપ્ત કરશે અને ત્યારબાદ ઉત્કૃષ્ટ ધર્મને કરશે. टार्थ :- 'इहं'= मा हिनायतनमा 'जिणिंदबिंब'= नेिश्वरदेवनी प्रतिमाने 'अकलंक'= स्त्रीसंग तथा शस्त्र माहिना संग वगेरे घोषोथी रहित 'दठूण'= होने, 'अण्णे वि'= जी. 55 'भव्वसत्ता'= तेवा प्रा२ना प्रजण पुएयथा प्रेरायेला भव्य वो 'पडिबुज्झिस्संति'= भावनिद्रा स्व३५ मिथ्यात्व दूर थवाथी सभ्यस्वने प्रात ४२शे, 'तओ परं'= त्या२ ५छी ‘परं'= उत्कृष्ट 'धम्म'= धभने 'काहिति'= 32. // 321 // 7/27 ता एयं मे वित्तं, जमेत्थमुवओगमेति अणवरयं / इय चिंताऽपरिवडिया, सासयवुड्डी उ मोक्खफला // 322 // 7/28 छाया :- तदेतत् मे वित्तं यदत्र उपयोगमेति अनवरतम् / इति चिन्ताऽप्रतिपतिता स्वाशयवृद्धिस्तु मोक्षफला // 28 // ગાથાર્થ :- જિનમંદિર તૈયાર થતાં જિનબિંબની સ્થાપના, સાધુભગવંતોનું દર્શન, અને ભવ્યજીવોને પ્રતિબોધ થશે તેથી જે ધન જિનમંદિરમાં વપરાય છે તે જ ધન મારું છે તે સિવાયનું પરમાર્થથી પારકું છે. આ પ્રમાણે સતત અવિચ્છિન્ન શુભ વિચારણા એ શુભ પરિણામની વૃદ્ધિ છે. અને તેનાથી અવશ્ય મોક્ષરૂપ ફળ મળે છે. अर्थ :- 'ता'= तेथी 'एयं'= // 4 'मे'= भा 'वित्तं'= धन छ. 'जं'= 'एत्थं'= / हिनायतनमा 'उवओगं'= 64योगमा 'एति'= मावे छे. 'अणवरयं'= सतत 'इयं'= मावा घडारनी 'चिंता'= विया२९॥ 'अपरिपडिया'= अविछिन्न रीते, मह 'अपरिपडिया' शनी संस्कृत छाया 'अप्रतिपतिता' : 'अपतिपतिता' अम से प्रा२नी थाय छे. 'सासयवुड्डी उ'= शुभ साशयनी वृद्धि 'मोक्खफला'= भोक्ष३५. ३गने अवश्य आपे छ. // 322 // 7/28 હવે જયણાનું વિવરણ કરતાં કહે છે : जयणा य पयत्तेणं, कायव्वा एत्थ सव्वजोगेसु / जयणा उ धम्मसारो, जं भणियो वीयरागेहिं // 323 // 7/29 छाया :- यतना च प्रयत्नेन कर्तव्या अत्र सर्वयोगेषु / / यतना तु धर्मसारो यद् भणितो वीतरागैः // 29 //
SR No.035330
Book TitlePanchashak Prakaran Gujarati Bhavanuvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmratnavijay
PublisherManav Kalyan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages441
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size37 MB
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