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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि जलने पर न तो यह द्रव्य नष्ट' होगा न इसका रंग नाम का गुण नष्ट होगा बस यदि कुछ नष्ट होगा तो इसके रंग नाम के गुण की सफेद पर्याय ? समकित : हाँ, बिल्कुल सही समझे। न तो कभी कोई द्रव्य नष्ट होता है न ही उसका कोई गुण। यदि कुछ नष्ट होता हैं तो वह है द्रव्य के गुण की पर्याय। द्रव्य और उसके गुणों का नष्ट न होना ही द्रव्य की शाश्वतता इसी प्रकार न अजीव द्रव्य बदलकर जीव द्रव्य होता है ना ही उसका रंग नाम का गुण बदल कर गंध नाम का गुण होता है। बस इसके रंग नाम के गुण की सफेद पर्याय बदलकर पीली/भूरी/काली हो जाती है। प्रवेश : इसका मतलब यह हुआ कि न द्रव्य बदलते हैं, न ही उसके गुण बदलते हैं यदि कुछ बदलता है तो द्रव्य के गुणों की पर्याय ? समकित : हाँ, बिल्कुल सही। द्रव्य और उसके गुणों का न बदलना ही द्रव्य की शुद्धता है। कुल मिलाकर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि द्रव्य और उसके गुण शाश्वत और शुद्ध' रहते हैं, यदि कुछ अशाश्वत/क्षणिक और प्रवेश : भाईश्री ! शाश्वत और शुद्ध द्रव्य के बारे में विस्तार से बताईये न ? समकित : हमारा अगला पाठ यही है। जिसने पर्याय दृष्टि हटा दी और द्रव्य दृष्टि प्रगट की वह दूसरे को भी द्रव्य दृष्टि से पूर्णानन्द प्रभु ही देखता है। पर्याय का ज्ञान करें, परन्तु आदरणीय-रूप में, दृष्टि के आश्रय-रूप में तो उसको त्रैकालिक ध्रव शुद्ध द्रव्य ही है। -गुरुदेवश्री के वचनामृत 1.destroy 2.state 3.eternity 4.purity 5.conclusion 6.eternal 7.pure 8.momentary 9.impure
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
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