SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 73 और जब उसने पानी पी लिया तब उसकी पानी की इच्छा कुछ समय के लिये शान्त' हो गई और वही पानी दुःख रुप लगने लगा तभी तो एक-दो गिलास पानी पीने के बाद व्यक्ति फिर पानी की ओर देखना भी पसंद नहीं करता और इतना ही नहीं जिस समय पानी पीने की इच्छा शान्त हुई उसी समय वापस अपने आरामदायक विस्तर पर जाकर बैठने की या फिर कोई और नयी इच्छा उत्पन्न हो गई। इस प्रकार इच्छा के फल में भी दुःख ही है। इसी तरह यह इच्छा यानि कि दुःख का सिलसिला बराबर चलता ही रहता है। जिस समय एक इच्छा कुछ समय के लिये शान्त होती है उसी समय नयी इच्छा उत्पन्न (पैदा) हो जाती है और जिस समय वह नयी इच्छा शांत होती है तो उसी समय दोबारा वही पुरानी या कोई और नयी इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इसप्रकार आकुलता का सिलसिला चलता ही रहता है, दुःख लगातार बना ही रहता है। और फिर इसकी इच्छाएँ असीमित-वस्तुओं को भोगने की हैं। एक वस्तु इकठ्ठी करता है, तो दूसरी वस्तु छूट जाती है, कारण कि सभी वस्तुएँ एक ही व्यक्ति को प्राप्त हो जायें यह असंभव है, क्योंकि संसार की स्थिति कुछ इस प्रकार है- एक अनार और सौ बीमार। और यदि किसी प्रकार ऐसा हो भी जाये तो इसके भोगने की शक्ति भी सीमित है और यदि इसकी भोगने की शक्ति दूसरों की अपेक्षा कुछ ज्यादा भी हो, तो जब दाँत होते हैं तब चने नहीं होते और जब चने होते हैं, तब दाँत नहीं होते। जैसे कि बचपन में भोगने का समय और शक्ति होती है लेकिन मनचाही भोग सामग्री नहीं होती क्योंकि माँ-बाप के आधीन हैं। जवानी में भोग सामग्री और भोगने की शक्ति होती है लेकिन भोगने का समय नही होता और बुढ़ापे में भोग समग्री और समय होता है लेकिन भोगने की शक्ति नहीं होती। इस प्रकार दुःख कभी मिटता नहीं। 1. suppress 2.sequence 3.suppress 4.infinite-objects 5.gather 6.impossible 7.situation 8.limited 9.desired
SR No.035325
Book TitleSamkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalvardhini Punit Jain
PublisherMangalvardhini Foundation
Publication Year2019
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy